निषाद सभाओँ का कड़वा सच



दोस्तोँ क्या आप जानते हैँ
निषाद सभा मेँ बुद्विजीवियोँ को
बोलने के लिए कितना समय
मिलता है ?


मै 25 से ज्यादा बार
निषाद सभाओँ मेँ गया हूँ

इस आधार पर मैँ
कहता हूँ

निषाद सभा मेँ बुद्विजीवियोँ को
बोलने के लिए समय
मिलता है


केवल 2 मिनट


बुद्विजीवी माने क्या ??
बुद्विजीवी से मेरा मतलब
है निषाद समाज के वे लोग
जो सरकार द्वारा आयोजित
कम से कम 5 अलग अलग
प्रतियोगी परीक्षा मेँ बैठ चुके होँ
और किसी एक परीक्षा मेँ
उन्हेँ सफलता मिली हो



निषाद समाज के इन बुद्विजीवियोँ
के पास निषादोँ को देने
के लिए कुछ बुद्वि और
सुझाव है


ये वे लोग हैँ जो
चक्रव्यूह के सातोँ द्वारोँ
को तोड़ना जानते हैँ



आखिर क्या चाहते हैँ बुद्विजीवी ???
15000 वेतन पाने वाले
और 10 से 5 आफिस मेँ
डयूटी करने वाले
बुद्विजीवी मात्र इतना चाहते हैँ
कि जब भी कहीँ निषाद सभा
या सम्मेलन हो
तो मँच पर बुला कर
1 घंटा उन्हेँ भी बोलने
दिया जाय


पर दोस्तोँ असलियत क्या है ????

आप खुद किसी निषाद
सभा मेँ जाकर देख
सकते हैँ
इन्हेँ मंच तक पहुँचने
ही नहीँ दिया जाता

और अगर कुछ बुद्विजीवियोँ
को मौका भी मिलता है
तो 2 मिनट का


2 मिनट मेँ 120 सेकेण्ड
होते हैँ

10 सेकेण्ड मंच तक पहुचने
मेँ लगते हैँ

10 सेकेण्ड मंच से वापस
उतरने मेँ लगते हैँ

शेष बचा समय = 100 सेकेण्ड


15000 वेतन पाने वाले
और 10 से 5 आफिस मेँ
डयूटी करने वाले
बुद्विजीवी
को केवल 100 सेकेण्ड
मेँ बतानी होती है
कि आखिर निषाद समाज
क्यूँ पिछड़ा है
कैसे और कब से हो रहा है
उनके साथ अन्याय
और सबसे जरूरी बात
क्या है उपाय ???


पर घबराइए मत दोस्तोँ
अब हम मुन्नाभाई जैसे
चुटकुलोँ पर काम कर
रहे है
जिन्हेँ सुनाने मेँ
100 सेकेण्ड से कम
का वक्त लगता है


2 मिनट बाद निषाद
जाति के कार्यकर्ता
चिल्लाने लगते है :
"अबे साले मंच से
उतरेगा की नहीँ,
टाइम खत्म, नेता लोग
का अब नाच गाना सुनने
का मन है
अब नाच गाना होगा "

मंच सजने लगता है
बुद्वजीवी कहता है
"भाई जब तक मंच
सज रहा है मुझे कुछ
बोलने दो "

निषाद
जाति के कार्यकर्ता :
"माधरचोद तेरे को नेताजी
ने भाषण सुनने को बुलाया है
या भाषण देने के लिए"


15000 वेतन पाने वाले
और 10 से 5 आफिस मेँ
डयूटी करने वाला
बुद्विजीवी
मंच से उतर जाता है


फिर मंच पर आते हैँ
कव्वाल
पहले दारू की बोतल
खोल कर दारू पीयेगेँ
फिर गाना चालू होगा

"का होई निरहू
पढाई ये बचवा
लेता 2 ठे बकरी
जिआई ए बचवा"


नेता को पूरी छूट
चाहे 5 घंटे के सम्मेलन
मेँ 3 घंटा भाषण देता रहे

भाषण चालू होता है
एक ठे रहेन राम जी
जब जंगले मेँ गएन
तो मिले निषादराज
बोलो जय निषादराज
एक ठे रहेन एकल्वय
बोलो जय एकल्वय

मायावती ने हमको
केवल पाँच टिकट दिया
सारे समाज का वोट
मायावती को जाना
चाहिए

मुलायम के समर्थक नेता
जब मंच पर आते हैँ
तो

मुलायम ने हमको
केवल छ: टिकट दिया एक ज्यादा दिया
सारे समाज का वोट
मुलायम को जाना
चाहिए


15000 वेतन पाने वाले
और 10 से 5 आफिस मेँ
डयूटी करने वाले
बुद्विजीवी
किसी कोने मेँ बैठा
रो रहा है
आखिर रविवार
की छुट्टी थी
घर पर रह कर आराम करता


अगली सभा मेँ उसे देखते
ही निषाद जाति के नेता
इस आदमी को पहले
घसीट कर सभा से बाहर करो


आखिर मंच पर
बुद्विजीवियोँ को
क्यूँ नहीँ बोलने देते
निषाद जाति के नेता :
कारण है डर
निषाद जाति के नेता
सोचते हैँ अगर बुद्वीजीवियोँ को
मंच से बोलने देगेँ तो
15000 वेतन पाने वाले
और 10 से 5 आफिस मेँ
डयूटी करने वाले
बुद्विजीवी
अपनी अपनी नौकरियाँ
छोड़ कर चुनाव
लड़ना चालू कर देगेँ
और फिर तब उनको
समाज मेँ कोई नहीँ पूछेगा
उनका राजनीतिक कैरियर
तबाह बरबाद हो जाएगा

दोस्तोँ इस लेख को
निषाद समाज के हर
नेता को पढकर सुनाओ
ताकि जब 5 घंटे
की सभा मेँ
3 घंटा उन्हेँ बोलने
को मिले

उन्हेँ कोई पद नहीँ चाहिए
बस इतनी सी विनती
बुद्विजीवियोँ के समय
का दायरा 100 सेकेण्ड से
कुछ बढ़ा दिया जाए

written by Amit Nishad

जनलोकपाल और निषाद

कभी सोचा है कि अगर
अन्ना का जनलोकपाल कानून 
बन जाए तो निषाद 
समाज को क्या फायदा 
होगा ?


मैँ कहता हूँ कुछ नहीँ


जी हाँ कुछ नहीँ


भष्ट्राचार मिट जाएगा तो 
जाति प्रमाण पत्र
राशन कार्ड
पासपोर्ट
सब आसानी से बन जाएगा


पर जब 1000 IAS अधिकारियोँ की भर्ती होगी तो आबादी के हिसाब से न्यूनतम 200 अधिकारी निषाद समाज से नहीँ जा पाएगेँ

अन्ना के जनलोकपाल कानून 
बनने के बाद भी
निषाद समाज के 
महज 2 या 3 ही लोग
ही IAS बन पाएगे 


जब डिग्री कालेजोँ मेँ 1000
शिक्षकोँ की भर्ती होगी तो आबादी के हिसाब से न्यूनतम 200 शिक्षक निषाद समाज से नहीँ जा पाएगेँ

अन्ना के जनलोकपाल कानून 
बनने के बाद भी
निषाद समाज के 
महज 1 या 2 ही लोग
ही डिग्री कालेज मेँ
शिक्षक बन पाएगे


पता कीजिए आपके 
कालेज मेँ कुल कितने 
शिक्षक है
क्या 24.3 प्रतिशत शिक्षक
निषाद समाज के हैँ ?


इसके लिए हमेँ भगत सिँह राजगुरू चंद्रशेखर आजाद आदि का समाजवाद लाना होगा


via Amit Nishad

14.5 प्रतिशत नौकरियाँ निषादोँ को मिलनी चाहिए

उत्तर प्रदेश मेँ निषाद 
समाज की वास्तविक 
आबादी पैँतालिस प्रतिशत (45 PERCENT) है


उत्तरप्रदेश का कोई
ऐसा गाँव शहर मोहल्ला नहीँ जहाँ
निषाद समाज के लोग नहीँ रहते


जब आरक्षण देने के 
लिए जाति आधारित
जनगणना की गई तो
निषाद समाज की आबादी का 
कुल प्रतिशत लगभग 40 आया 


उच्च जातियोँ को लगा
कि अगर समाजवाद
के नियमोँ के मुताबिक
अगर इन्हेँ आरक्षण देना पड़ा
तो 40 प्रतिशत का आरक्षण देना पड़ेगा


इसे रोकने के लिए उच्च जातियोँ 
के पास केवल रास्ता था
ठाकुर ब्राह्मण पंडित
आदि 
उच्च जातियोँ की आबादी
सरकारी आकड़ोँ मेँ
बढ़ा कर
बताया जाय और
निषाद व अन्य जातियोँ
की आबादी जितना 
ज्यादा घटा सकेँ 
उतना ज्यादा घटा
दिया जाए


सारी तिकड़म करने के बाद भी
सरकार सरकारी आकड़ोँ 
मेँ हमारी जाति की 
आबादी 40 प्रतिशत
से
घटकर
22 प्रतिशत हो गई


पर ये निषाद समाज को
22 प्रतिशत भी नहीँ
देना चाहते थे

उन्होने निषाद समाज
की 
7.5 प्रतिशत उपजातियोँ
को घुमन्तु घोषित कर
दिया


जी हाँ

घुमन्तु

यानी एक जगह से
दूसरी जगह घूमने
वाले


और जो एक जगह से
दूसरी जगह घूमने
वाले हैँ जिनका कोई 
निश्चित ठिकाना
नहीँ था
उनका जाति प्रमाण
पत्र नहीँ बनाया जा
सकता


उन्हेँ किसी भी प्रकार का
आरक्षण आज तक
प्राप्त नहीँ है 


निषाद समाज को अलग
से 14.5 प्रतिशत ना देकर
अन्य पिछड़ा वर्ग मेँ
रख दिया गया

और जो 14.5 प्रतिशत
नौकरियाँ
निषादोँ को मिलनी
चाहिए थी
उसमेँ से केवल 0.5
प्रतिशत ही मिल पाता है

बाकी कि 14 नौकरियोँ
पर यादव जाति के
युवकोँ का कब्जा 
हो जाता है


घुमन्तु आरक्षण
मागने तो जाए मार
कर भगा दिया जाएगा
"सालोँ घुमन्तु की जाति
घुमोँ फिरो ऐश करो

नौकरियोँ आदि मेँ हिस्सा
मागोगे तो जमीन मेँ 
दफन कर दिए जाओगे "

अगर आप ब्लाग
लिखते है तो अपने 
ब्लाग पर इसे पोस्ट करेँ

अगर आप नेता हैँ
तो अपने गाँव के
लोगोँ को बताए
via Amit Nishad

समाजवाद क्या है ?

समाजवाद क्या है ?

समाज मेँ सभी जातियोँ और वर्गोँ का सरकारी तंत्र मेँ उनकी आबादी के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व

ये परिभाषा समाजवाद के पिता कार्ल माकर्स की है l ऐसी ही परिभाषा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के क्रांतिकारी भगत सिँह ने भी दी है

उत्तर प्रदेश मेँ निषाद समाज की सभी उपजातियोँ की आबादी इतनी है कि 404 विधान सभा की सीट मेँ से न्यूनतम 80 निषाद समाज की सभी उपजातियोँ से चुनी जानी चाहिए

खुद को समाजवाद के मुताबिक बताने वाली समाजवादी पार्टी ने क्या निषाद समाज के 80 उम्मीदवारोँ को टिकट दिए हैँ 

अगर नहीँ तो हटा दो ये समाजवादी शब्द पार्टी के नाम से

सपा का नया नाम = जातिवादी पार्टी

बसपा का नया नाम = बपा बहुजन पार्टी

आइए आने वाली 26 जनवरी को संकल्प ले की समाजवाद के नाम पर अन्याय पूर्ण व्यवस्था को नहीँ सहेगेँ
जिस समाजवाद के लिए भगत सिँह आजाद जैसे लोगोँ ने जान दी वो आकर रहेगा



दोस्तोँ जिस दिन गाँव 
गाँव मेँ निषाद समाज
ने एक एक जिन्दा 
बच्चे औरत आदमी 
को जाति को गिन कर
गुपचुप तरीके से
"जाति रजिस्टर" बना लेगी
और फिर सारे आकड़ोँ को जोड़ेगी

उसे पता चलेगा कि
उत्तरप्रदेश मेँ 60 प्रतिशत 
निषाद समाज के लोग हैँ


निषाद समूह के कुछ बुद्विजीवी 
लोगोँ का अनुमान कहता है
उत्तरप्रदेश मेँ 
चाहे जैसे जोड़ो 
न्यूनतम 45 प्रतिशत 
निषाद समाज है

जरा सोचो तब क्या
होगा जब निषाद समाज को
पता चलेगा कि
उत्तरप्रदेश मेँ 60 प्रतिशत 
निषाद समाज के लोग हैँ


अगर विधानसभा की 
60 प्रतिशत सीटेँ
निषाद समाज को दे 
दी जाए

केवल आधी सीटेँ चाहिए सरकार बनाने के लिए


आने वाले 1000 सालो
तक निषाद उत्तरप्रदेश पर राज्य करेँगेँ


आने वाले 1000 सालो
तक उत्तरप्रदेश का हर
मुख्यमंत्री निषाद होगा
हर मंत्री निषाद होगा

हर मंत्रालय के प्रमुख 
की कुर्सी पर निषाद 
बैठा होगा


पर कैसे होगा ये सब
आजादी मिले 65 साल 
हो गए और हमारी जाति
के नेता एक जाति 
रजिस्टर नहीँ बना पाए


अपने गाँव के नेता एक 15 रूपए
की रजिस्टर नोटबुक



क्या आप अपने नेता 
को एक 15 रूपए की 
कापी खरीद कर नहीँ दे सकते ?


निषाद समाज के नेता 
से कहो
लिस्ट बनाए उन सब की जो आगामी मतदान मेँ वोट
देने वाले हैँ

देखना तुम्हारे गाँव मेँ 
हर कोई वोट देने जाएगा

ठाकुर पंडित यादव 
बम्बई दिल्ली गए 
अपने रिश्तेदारोँ को 
भी आने जाने का टिकट और पाँच सौ 
रूपए भेज कर बुला 
लेते हैँ

मतदाता सूची लेकर बैठो
एक एक चेहरे के बारे
मेँ पता लगाओ
वो गाँव मेँ किसके घर 
का है और कहाँ रहता है

अपने दादा जी से पूछो
क्या ये ठाकुर
आपके गाँव मेँ पैदा हुआ था

ध्यान से देखो

सनसनीखेज खुलासे होगेँ

अपने आप को उत्तरप्रदेश मेँ
50 प्रतिशत
बताने के लिए 
इन्होने अपने परिवार
के सदस्योँ की संख्या 
बढा कर लिखाई है

हमारे गाँव मेँ अजय सिँह
के दो बेटे हैँ
मतदाता सूची मेँ इनके
18 बेटे और बेटियोँ के
नाम दर्ज हैँ

दोस्तोँ क्या 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीँ मिलना चाहिए


नहीँ बिल्कुल गलत बात


हर जाति को उसकी आबादी के हिस्सा से
हिस्सा मिलना चाहिए


अगर किसी राज्य मेँ ठाकुर ब्राह्मण की आबादी केवल 2 प्रतिशत है तो उस राज्य मेँ ठाकुर ब्राह्मणोँ को 2 प्रतिशत से ज्यादा सीटेँ नहीँ लेनी चाहिए

आबादी केवल 2 प्रतिशत
फिर भी ठाकुर ब्राह्मण चाहते है कि 50 प्रतिशत सीटेँ सामान्य वर्ग अर्थात ठाकुर लाला ब्राह्मण से भरी जाएँ


क्या ये शहीद भगत सिँह राजगुरू आजाद के समाजवाद के सपने को चकनाचुर करना नहीँ है

क्या ये देश के साथ द्रोह नहीँ कर रही

एक नज़र में गुरु द्रोणाचार्य जी

एक बार निषाद कुमार एकलव्य गुरु द्रोण के पास आया और उनसे उसे अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया। किंतु द्रोण ने ये कहकर उसे अपना शिष्य नहीं बनाया की वह क्षत्रिय भी नहीं है और राजपुत्र भी, पर उसे ये वरदान दिया की वो यदि उनका स्मरण करके अस्त्र विद्या सीखेगा तो उसे अपने आप ज्ञान आता जायेगा। एकलव्य गुरु द्रोण की मिट्टी की मुर्ति बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा और इस प्रकार एकलव्य बहुत बडा़ धनुर्धर बन गया। एक दिन जब एकलव्य अभ्यास कर रहा था तो एक कूकर (कुत्ता) भौकने लग जिससे उसका ध्यान भंग हो रहा था। इसपर उसने बडी़ कुशलता से बाणों द्वारा बिना हानि पहुँचाए कूकर का मुख बंद कर दिया। जब वह कूकर वहाँ से भाग रहा था तो द्रोण और उनके शिष्यों ने उसे देखा और सोच मे पड़ गये की कौन इतनी कुशलता से कूकर का मुख बंद कर सकता है। तब वे खोजते हुए एकलव्य के पास पहुँचे। वह वहाँ गुरु द्रोण कि मुर्ति के आगे अभ्यास कर रहा था। त द्रोण द्वारा अपने सबसे प्रिय शिष्य अर्जुन का स्थान छिनता देखकर उन्होंने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में उसके दाएँ हाथ का अंगूठा माँग लिया और एकलव्य ने हर्षपुर्वक अपना अंगूठा काट कर अपने गुरु को भेंट कर दिया।

गौरवशाली रहा है निषाद समाज का इतिहास



गौरवशाली रहा है निषाद समाज का इतिहास
जौनपुर: बिहार के सांसद कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद ने कहा है कि निषाद समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। आज समाज को इस बात की जरूरत है कि वह अपने अतीत को जाने और उसी आधार पर आगे बढ़े। वे शुक्रवार को निषाद राज जयन्ती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी अपने इतिहास से शिक्षा लेकर समाज को विकास के रास्ते पर ले जा सकती है।
निषाद संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष और कार्यक्रम के आयोजक तिलकधारी निषाद ने कहा कि हमारा समाज बगैर शिक्षा के आगे नहीं बढ़ सकता है। सभी की जिम्मेदारी है कि बच्चों को अच्छी तालीम दिलायें ताकि उनका, समाज का और देश का भविष्य उज्ज्वल हो सके। इससे पूर्व निषाद जयन्ती के अवसर पर एक जुलूस सद्भावना सेतु से निकला। यह जुलूस ओलन्दगंज होते हुए अम्बेडकर तिराहे पर पहुंचा। वहां सभा का आयोजन किया गया। प्रारम्भ में सभी का स्वागत महिला मोर्चा की अध्यक्ष श्रीमती प्रेमा देवी ने किया।
इस अवसर पर डा.राजेन्द्र प्रसाद बिन्द, शेखर निषाद, मुरलीधर निषाद, शोभनाथ आर्य, राजकुमार निषाद सभासद, प्यारेलाल निषाद, रामहित निषाद, राम किशुन निषाद, प्रदीप कुमार आदि ने विचार व्यक्त किया।

11 January 2012 » प्रदेश भाजपा मत्स्य प्रकोष्ठ कार्यसमिति की घोषणा

रांची : भारतीय जनता पार्टी मत्स्य प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक दीपक कुमार निषाद ने आज प्रदेश कार्यसमिति की घोषणा कर दी है।
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रकोष्ठ के सदस्य ब्रजनेश चंद्र विद्य्नार्थी ने आज यहां बताया कि कार्यसमिति में सह संयोजक विनोद चौधरी, विजय नायक, पप्पू साहनी के अलावा सदस्य के रुप में वरुण कुमार मंडल, भोला प्रसाद, सुरेश निषाद, दीपक कैवते, लखन कैवर्त, मधुसूदन कैवर्त, विजय नायक, रामप्रवेश नायक, संजीव नायक, सरयू निषाद को शामिल किया गया है। आमंत्रित सदस्य के रुप में अरुण मंडल, डॉ. राज कुमार, बिरजू निषाद, शंकर निषाद, अशोक निषाद, रवींद्र साहनी, महेश निषाद, विनोद कुमार प्रसाद, हरि नारायण साहनी, किशोरी राम केवट, उपेंद्र मांझी, सूरज कुमार धीवर, प्रवीण केवट, डॉ. जेपी निषाद, युगल किशोर निषाद, हुल्लास चौधरी, मोतीलाल सरकार, सोमनाथ महलदार, अमरजीत केवट, मनोज केवट, जीतेंद्र केवट, हरि केवट, अम्बिका चौधरी, अशोक चौधरी, बच्चन चौधरी शामिल है। जिला संयोजक के तहत रांची ग्रामीण की जिम्मेवारी सुनील नायक, लोहरदगा की जिम्मेवारी रघुनाथ महली, गुमला में नवलकिशोर सिंह खैरवार, सिमडेगा में दिलीप केवट, खूंटी में लखेंदर नायक, पश्चिम सिंहभूम में रतन निषाद, सरायकेला-खरसावां में कृष्णा कैवर्त, जमशेदपुर महानगर में नीलू देवी मछुआ, पूर्वी सिंहभूम ग्रामीण में विरेन धीवर, गढ़वा में दशरथ चौधरी, लातेहार में रामलगन सिंह खरवार, चतरा में अन्नु निषाद, हजारीबाग में विनोद निषाद, रामगढ़ में चरण केवट, कोडरमा में विजय निषाद, गिरिडीह में नोखेलाल मल्लाह, बोकारो में बैजनाथ केवट, धनबाद में अजय निशाद, जामताड़ा में बोमबल धीवर, गोड्डा में कामेश्वर केवट, साहेबगंज में कृपनाथ मंडल उर्फ बमबम और पाकुड़ में द्वारिका मंडल को जिम्मेवारी सौंपी गयी है।

सपा महिला सभा की जिला समिति हुई घोषित


चित्रकूट(एस.बी.न्यूज)13 जनवरी। समाजवादी महिला सभा ने जिला कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है। कार्यकारिणी में दस जिला सचिव समेत 31 महिलाओं को जगह दी गई है।
समाजवादी महिला सभा की जिलाध्यक्ष उर्मिला निषाद ने शुक्रवार को पार्टी के जिला कार्यालय में जिला कार्यकारिणी की घोषणा की। उन्होंने बताया कि राजापुर निवासी सविता मोदनवाल को उपाध्यक्ष, ग्राम मन कुंवार की निवासी मनोरमा सिंह को जिला महासचिव और सविता कोटार्य को जिला कोषाध्यक्ष बनाया गया है। इसके अलावा गोलकी सोनकर, शारदा मोदनवाल, चंद्रकली वर्मा, चुन्नी देवी निषाद, चुनकी देवी प्रजापति, बिट्टी निषाद, नूरजहां, पार्वती शुक्ला, बेबी निषाद, चमेलिया निषाद को जिला सचिव तथा चुन्नी देवी सोनकर, चच्ची, मीरा निषाद, गुलसनिया, शहरुन्निशा, मुन्नी देवी, रामा देवी जायसवाल, नथिया देवी निषाद, गीता देवी, नथिया देवी वर्मा, मालती देवी विश्वकर्मा, रामदुलारी कोटार्य, रुखशाना, लक्षमिनिया, रन्नू बेगम, चमेलिया निषाद व तुलसा देवी विश्वकर्मा को कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया है।
इस मौके पर सपा जिलाध्यक्ष राजबहादुर सिंह यादव, उपाध्यक्ष शक्ति प्रताप सिंह तोमर, मोहम्मद गुलाब खां, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, नरेन्द्र गुप्ता,जिला सचिव फूलचंद्र करविरया, अभिषेक निषाद, राजकुमार त्रिपाठी, सत्य नारायण कोल आदि मौजूद रहे।

फूलन देवी : The Bandit Queen

Part 1.


"मैं फूलन देवी हूँ भेनचोद.. मैं हूँ।"

बेंडिट क्वीन फ़िल्म का यह पहला संवाद है, जो दर्शक के कपाल पर भाटे की नुकीली कत्तल की माफिक टकराता है। अगर दर्शक किसी भी तरह के आलस्य के साथ फ़िल्म देखने बैठा है, या बैठा तो स्क्रीन के सामने है और मग़ज़ में और ही कुछ गुन्ताड़े भँवरे की तरह गुन गुन कर रहे हैं, तो सब एक ही झटके में दूर छिटक जाते हैं। दर्शक पूरी तरह से स्क्रीन पर आँखें जमाकर और मग़ज़ के भीतर के भँवरे पर काबू पाकर केवल फ़िल्म देखता है और फ़िल्म यहीं से फ्लैश बैक में चली जाती है।

स्क्रीन पर नमुदार होते हैं, चप्पू के हत्थे को थामें मल्लहा के हाथ, और फिर पूरी नाव। नाव चंबल की सतह पर धीरे से आगे खिसकती है, अपनी गोदी में आदमी, औरत, बच्चे, पोटली, ऊँट और भी बहुत कुछ मन के भीतर का, जो नाव में सवार चेहरों पर दिखता है। शायद काम की तलाश, शायद गाँव को छोड़ने का दुख और भी कुछ। दर्शक इन्हीं चेहरों में खोजता है ख़ुद को और कुछ सोचने की तरफ़ बढ़ता है कि भूरे, मटमेले, ऊँचे बीहड़ों में से निकलता है बकरियों का एक झुण्ड। नदी किनारे आते झुण्ड के पीछे चल रहे हैं एक दाना (बुजुर्ग) और किशोर। यह पूरा दृश्य दर्शक के मन में रोज़गार के अभाव और विस्थापन की त्रसदी की चित्रात्मक कहानी बुनता है।


फिर आता है एक बच्ची की हाँक में एक बच्ची को बुलावा- फूलन … ए फूलन…

वह 1968 की एक दोपहर थी, जिसमें फूलन को पुकार रही थी एक बच्ची, जो शायद उसी की बहन थी। लेकिन ग्यारह बरस की फूलन अपनी सखियों के साथ नदी में किनारे पर डुबुक-डुबुक डूबकियाँ लगा रही थीं। वे केवल नहा नहीं रही थी, बल्कि सब सखियाँ मिलकर नदी में एकदूसरी के साथ और नदी के पानी के साथ खेल रही थीं। एकदम निश्चिंत और उन्मुक्त। शायद ये बेदधड़कपन और उन्मुक्तता चंबल के पानी में घुला कोई तत्व था, जो फूलन के भीतर कुछ ज़्यादा ही मात्रा में घुल गया था।

इस बार हाँक थोड़ी नज़दीक से और कुछ ज़ोर से आयी- फूलन…. ए फूलन…

फूलन ने देखा अपनी बहन के साथ और वहीं से पूछा- कईं है………..

तो के बुला रये ..

काई …?

मोके ना मालुम…

नदी से बाहर आती फूलन सरसों की एक कच्ची फली की तरह नन्हीं लगती है, लेकिन सवालों से भरी आँखें बोलती लगती है। फूलन के नदी से बाहर आने और घर पहुँचने के बीच, फ़िल्म में यह स्थापित किया जा चुका होता है कि फूलन को उसका पति पुत्तीलाल लेने आया है। पुत्तीलाल की उम्र क़रीब 27-28 बरस है। फूलन की माँ अनुरोध करती है कि अभी मोड़ी ग्यारह बरस की ही है। कुछ महीने बाद गौना कर देंगे। लेकिन पुत्तीलाल नहीं मानता है। अपनी माँ के बूढ़ी होने की वजह से काम न कर पाने का हवाला देता है। कहता है कि उसे मोड़ियों की कमी नहीं है। यही नहीं, बल्कि रिश्ता तोड़ने की भी धमकी देता है। फूलन का पिता भी समझाता है, लेकिन जब पुत्तीलाल नहीं मानता और किसी कर्ज़ माँगने वाले की तरह बात करता है। उसे दी गयी गाय को खूँटे से छोड़ लेता है। तब फूलन के पिता कहते हैं – ले जाने दे, अपन को कौन मोड़ी को घर में रखना है। और कोई ऊँच-नीच हो गयी तो … आदि..आदि चिंताएँ व्यक्त करता है। अंततः ग्यारा बरस की फूलन को 27-28 बरस के पुत्तीलाल के साथ रवाना कर दी जाती है।

फूलन का माँ-बाप से अलग होना और पुत्तीलाल के साथ जाने का दृश्य बहुत ही मार्मिक है। जैसे कोई गाय का दूध धाहती बछड़ी को स्तनों से अलग खींचता है और वह दौड़कर फिर स्तन को मुँह में ले लेती है। लेकिन जब बछड़ी स्तन को मुँह में लेने जाये और गाय भी उसे लात या भिट मारने को विवश हो जाये, तब दोनों ही पर क्या गुज़रती होगी, जबकि उस वक़्त उसे स्नेह के दूध की बेहद ज़रुरत होती है। दर्शक के मन में यही दृश्य उभरता है।

जब ससुराल पहुँचती है। फूलन गाँव के बीच के कुए पर गारे का हण्डा लेकर पानी भरने जाती है। अभी भी कई गाँव में दबंगों और नीची समझी जाने वाली जाती के लोगों के पानी के कुए अलग-अलग होते हैं। लेकिन फूलन की ससुराल में 1968 में भी ठाकुर और मल्लाह का एक ही कुए से पानी भरना बताया है। एक कुए से पानी भरते हैं, लेकिन एक दूसरे के बर्तनों को आपस में छूने से बचाते हैं। पानी खींचने की रस्सी, बल्टी भी अलग रखते हैं। लेकिन जब ग्यारह बरस की बहू को पता नहीं होता है, और अनजाने में या भूल से वह ठाकुर वाली बाल्टी को छूने लगती है, तो कुए से पानी भरने वाली ठकुराइने वहीं उसे घुड़क देती है और वह दूसरे छोर से, दूसरी रस्सी,बाल्टी लेकर कुए से पानी खींचती है। पानी लेकर चलती है, तो उसका हम उम्र मोड़ा और मोड़ों के साथ मिलकर उसका हण्डा फोड़ देता है। फूलन हण्डा फोड़ने वालों पर ज़ोर से चिल्लाती है, उसका चिल्लाना ठकुराइनों के कान खड़े कर देता है।

जब बग़ैर पानी लिए घर पहुँचती है, तो सास हण्डा फूटने की बात को लेकर डाँटती है। फूलन का सास के सामने भी वही तेवर बरकरार होता है। वह सास को ताना मारती है- गारे का हण्डा टूट गया, तो पीतल का लाओ, जैसे ठकुराइनों के पास है।

सास को यह ताना गचता है। गचना स्वाभाविक भी है, क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति ठाकुरों की बराबरी करने की नहीं होती है। सास कहती है- बहुत जबान चलती है, बुलाऊँ पुत्तीलाल को..

पुत्तीलाल फूलन को इस बात पर मारता है। वही पुत्तीलाल रात में ग्यारह बरस की फूलन के साथ बलात्कार करता है। पुत्तीलाल के इस कृत्य ने फूलन के जीवन में किसी भी तरह के सुख की संभावना को जैसे पोंछ दिया था। उस घटना से फूलन के मन में पुरुष के प्रति जो घृण का रिसाव हुआ, वह पूरी फ़िल्म में कई जगह प्रकट होता है। फूलन भागकर माइके आ जाती है। पुत्तीलाल से रिश्ता ख़त्म हो जाता है।



Part 2.


फूलन मायके में ही जवान होती है। उसकी जवानी पर गाँव के सरपंच के आवारा मोड़े और उसके साथी मोड़ों की नज़र होती है। वे उसे आते-जाते छेड़ते हैं और एक दिन खेत में अकेली को घेरकर ज़बरदस्ती करने की कोशिश करते हैं। ज़बरदस्ती तो नहीं कर पाते, लेकिन सब मिलकर उसे बुरी तरह से पीटते हैं। गाँव में पंचायत बैठती है और फूलन पर बदचलनी का एक तरफ़ा आरोप लगा उसे गाँव बाहर कर देती है। बार-बार प्रताड़ित, बार-बार बलात्कार फूलन के विद्रोही स्वभाव को कुचल नहीं पाता, बल्कि और भड़काता है। 

जब वह बंदूक थाम लेती है। पुत्तीलाल से बदला लेने पहुँचती है। पुत्तीलाल को गधे पर बैठाया जाता है। फिर लकड़ी के खम्बे से बाँध कर मारती-पीटती है। लेकिन जब वह यह कर रही होती है, उसके कान में ख़ुद की ही चीत्कार गूँजती है। वह चीत्कार जो कभी पुत्तीलाल द्वारा ज़बरदस्ती करने का विरोध करते हुए ससुराल में गूँजी थी। ग्यारह बरस की एक बहू जब मदद के लिए चीत्कार रही थी। सास दरवाजा भीड़कर दूसरी तरफ़ चली गयी थी। बदला लेते वक़्त उसे वह सब याद आ रहा था। उसकी छटपटाहट, उसे ग़ुस्से का पारावार किसी की भी मग़ज़ सुन्न कर देने वाला होता है। यहाँ फूलन अपने साथी विक्रम मल्लाह से कहती है- एस पी को चीट्ठी लिख…, अगर कोई छोटी मोड़ी को ब्याहेगा तो जान ले लूँगी।
जब फूलन को यह सब भोगना पड़ रहा था, तब केन्द्र और म.प्र. में काँग्रेस की सरकार थी। वही काँग्रेस, जो आज़ादी के बाद से ख़ुद को दबे-कुचलों के हित का ध्यान रखने वाली पार्टी होने का ढींढ़ोरा पीटती रही है। वही काँग्रेस जिसका इतिहास आज़ादी के आँदोलन में महत्तपूर्ण भूमिका निभाने वाला रहा है। उस पर धीरे-धीरे दबंगों और ठाकुरों ने किस तरह से कब्जा कर लिया। उस काँग्रेस का जैसे अर्थ ही बदल गया। जब फूलन अपने मान-सम्मान का बदला लेने और ख़ुद को ज़िन्दा बचाये रखने की लड़ाई लड़ रही थी, तब प्रदेश और देश की राजनीति में और सरकारों में भी ठाकुरों का ही बोलबाला था। इन ठाकुर नेताओं के संरक्षण में या आड़ में कह लो, इनके रिश्तेदार, और ख़ुद इन्हीं के द्वारा ग़रीब और मज़दूर वर्ग के लोगों पर किये जाने वाले शोषण और अत्याचार की कोई सीमा नहीं थी।

जंगल में भी जो ठाकुर डाकू थे, उनका दूसरे डाकू गिरोहों पर दबदबा था। जो उनके दबदबे को स्वीकार नहीं करता था, उसे या तो ख़ुद डाकू ही मार देते या पुलिस से मरवा देते। सरकार, पुलिस और डाकू सभी में ठकुराइ के प्रति बड़ी वफ़ादारी थी। डाकू बाबू गुर्जर को तो विक्रम मल्लाह उस वक़्त मार देता है, जब वह बीहड़ में फूलन के साथ ज़बरदस्ती कर रहा होता है। उसके कुछ वफ़ादारों को भी मार देता है और गेंग का लीडर बन जाता है।



Part 3.


जब लालाराम ठाकुर डाकू जेल से छूट कर आता है, तो विक्रम मल्लाह उसे पूरा सम्मान देता है। रायफल देता है। लेकिन लालाराम के मुँह से पहला वाक़्य जो निकलता है और जिस लहज़े में निकलता है, उससे जात-पात की बू आती है। उसकी बात मल्लाह डाकुओं को अच्छी नहीं लगती है, लेकिन सह लेते हैं। लालाराम को एक मल्लाह के हाथ नीचे डाकू बने रहना स्वीकार न था। वह ज़ल्दी ही मल्लाह को धोखे से मारकर कायरता का परिचय देता है। फूलन के साथी सभी ठाकुर डाकू सामूहिक बलात्कार कर अपनी वीरता का झण्डा ऊँचा करते हैं ! लेकिन इससे भी ठाकुर के पत्थर कलेजे को ठंडक नहीं पहुँचती है, तब लालाराम बेहमई गाँव में फूलन को पूरे गाँव की मौजूदगी में नग्न कर देता है और उसे पानी भरने को कहता है। उसके बाल पकड़कर एक एक को दिखाता है कि ये मल्लाह ख़ुद को देवी कहकर बुलाती है। मुझे इसने मादरचोद कहा था। गाँव के सारे ठाकुर फूलन को नग्न देखते हैं। कोई विरोध नहीं करता एक औरत को इस हद तक ज़लील करने की। उस वक़्त हवा को भी जैसे लकवा मार जाता है।



फूलन इस सबके बाद जी जाती है, जितना फूलन ने सहा किसी खाते-पीते घर की औरत को यह सहना पड़ता। या किसी भी दबंग को यह सहना पड़ता, तो शायद सत्ता में, गाँव में, और हर जगह अपनी मूँछ पर बल देकर घुमने वाले दबंग की पेशानी भीग जाती। लेकिन फूलन के साथ अनेकों बार हुए बलात्कारों, ज़्यादतियों को सत्ता ने कोई तरजीह नहीं दी। आज भी आये दिन दलितों, आदिवासियों और ग़रीब स्त्रियों के साथ बलात्कार और ज़्यादतियों की ख़बरे कम नहीं सुनने-पढ़ने में आती है। लेकिन किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगती है। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है। धार ज़िले के गाँव में कमज़ोर वर्ग की दो औरतों को निर्वस्त्र कर गाँव भर में घुमाया गया था। उन्हें भी वैसे ही देखा गया जैसे बेहमई गाँव में फूलन को देखा गया था।



कहने का मतलब यह है कि आज भी स्त्रियों पर अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं, बल्कि बढ़ते ही जा रहे हैं। जबकि स्त्रियों के मुद्दों पर काम करने के नाम पर, उन्हें चेतना संपन्न बनाने और उनके अधिकारों को बहाल कराने के नाम पर हज़ारों एन.जी. ओ. खुले हैं। लेकिन इस सब के जो नतीजे हैं, उससे वे कोई भी अंजान नहीं हैं, जिनके ज़िम्मे ज़िम्मेदारियाँ हैं, बस.. खामौश है। वह खामौशी शायद मुँह में भ्रष्टाचार की मलाई होने की वजह से है ! या फिर स्त्रियों की एक बड़ी जमात का फूलन के अनुसरण करने की है। भविष्य के खिसे में क्या है कभी तो राज़ खुलेगा !



14 फरवरी 1981 वह दिन था, जब फूलन, मानसिंह और साथी डाकुओं ने बेहमई गाँव के 24 ठाकुरों को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना ने राज्य और केन्द्र की सरकार की चिंता बढ़ा दी। क्योंकि म.प्र. और केन्द्र की सरकार में ठाकुर लाबी हावी थी। केन्द्र में देश की जनता को एमरजेंसी का स्वाद चखाने वाली प्रधानमंत्री थी। शायद उन्हीं दिनों प्रधानमंत्री पंजाब की राजनीति को नया रंग देने में व्यस्त थी, जिसका परिणाम देश ने बाद में देखा और फिर भोगा भी। लेकिन वही समय था, जब फूलन का ग़ुस्सा चंबल के किनारे तोड़ खौफ़ का पर्याय बन गया था। गाँव की सत्ता हो, देश की सत्ता हो या फिर सरकारी महकमा दबंग जहाँ कहीं था, विद्रोही फूलन के नाम से उसकी सांस ऊपर-नीचे हो रही थी। राज्य और केन्द्र की सरकार पर ठाकुर मंत्रियों का दबाव बढ़ रहा था। इसी के चलते सरकार ने फूलन के गिरोह को नष्ट करने का आदेश दिया। फिर पुलिस जितनी अमानवीय तरीक़े से फूलन के साथ पेश आ सकती थी, आयी। ठाकुर डाकू लालाराम और पुलिस ने या कहो लो सरकार ने मिलकर बागी फूलन की गेंग के ख़िलाफ़ अभियान शुरू किया। पहली बार में फूलन के गिरोह के दस बागियों को ढेर कर दिया। जंगल में पीने के पानी स्त्रोतों में ज़हर मिला दिया। फूलन को 12 फरवरी 1983 को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इस तरह फूलन के बागी जीवन का अंत हुआ। एक फूलन का बाग़ी जीवन ख़त्म हुआ। लेकिन जिस आर्थिक, सामाजिक ग़ैरबराबरी की खाई ने फूलन को बाग़ी बनाया वह संकरी न हुई, बल्कि चौड़ी होती जा रही है, जिससे बाग़ी नये-नये रूप में दिखाई दे रहे हैं।