वोट, साजिश और रामभुआल


आनंद सिंह/विनीत/ गोरखपुर
बसपा के पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद को आजकल जिस पुलिसिया कार्रवाई से दो-चार होना पड़ रहा है, उसके पीछे के सियासी मकसद को समझना बेहद जरूरी है। यह वह सियासी मकसद है, जिसकी बदौलत 15 लाख में से लगभग पांच लाख वोटरों का वोट बैंक कब्जाने की रणनीति काम कर रही है। चौंकिए मत! गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में निषादों का वोट बैंक सबसे बड़ा है। हर पार्टी अपने हिसाब से इस वोट बैंक पर कब्जा करना चाहती है। ऐसे में अगर रामभुआल निषाद (जैसा उनके समर्थक कहते हैं) को बेवजह घसीटा जा रहा है, तो कोई अचरज नहीं। सियासत के इस खेल में जो जीता, वही सिकंदर।
कौन जीता, कौन हारा : क्या फर्क पड़ता है कि अगर अखिलेश की पुलिस हेमंत पुजारी गैंग के कुख्यात शूटर पप्पू निषाद की अर्जी पर रामभुआल को गिरफ्तार करने के लिए लगातार हाथ-पैर मार रही है। यह बात अलग है कि पुलिस की हर कार्रवाई की सूचना रामभुआल को समय से मिल जाती है, जिससे अब तक वह पुलिसिया गिरफ्त से बाहर हैं। सूचना यह भी है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से गिरफ्तारी के खिलाफ उन्होंने स्थगन आदेश ले लिया है। संभव है, जब आप इस खबर को पढ़ रहे होंगे, रामभुआल आपके बीच मौजूद रहें। हालांकि, सियासत की इस लड़ाई में जीत किसकी होगी, हारेगा कौन, कुछ नहीं कहा जा सकता है।
तूफान की आहट : पुरानी कहावत है, चाय की प्याली और होठों के बीच कभी भी तूफान आ सकता है। जमुना निषाद के मरने के बाद निषादों की राजनीति को सहेजने वाले जिस चेहरे की कमी यह समाज महसूस कर रहा था, वह भी लगभग पूरी हो रही है। निषाद समाज धीरे-धीरे ही सही, रामभुआल को अपना नेता मानने लगा है। इस पुलिसिया कार्रवाई के दौरान सबसे बड़ी बात यही हुई कि बिरादरी के नाम पर जो लोग अब तक रामभुआल की खिलाफ थे, वे भी 17 मई को जिलाधिकारी कार्यालय में आयोजित बैठक में दिखे। वैसे भी, पिछले दो विधानसभा चुनाव परिणामों पर गौर करें, तो निषाद वोटर का ध्रुवीकरण साफ-साफ दिखता है। यह अचरज तो पैदा करता है, लेकिन है सत्य। पूर्वांचल की अधिकांश लोकसभा और विधानसभा सीटों पर निरूाादों की भूमिका निर्णायक है।
अहम हैं निषाद : 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल की लगभग सभी सीटों को निषाद वोटरों ने प्रभावित किया। यह वोट बैंक ‘पॉवरहाउस’ के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। इसने सियासी मठाधीशों के होश फाख्ता कर डाले हैं। यही वजह है कि पूर्व मंत्री और बसपा के गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के प्रभारी रामभुआल निषाद को एक खास रणनीति के तहत 7 मई को कैंट थाना क्षेत्र के छात्रसंघ चौराहे पर हेमंत पुजारी गैंग के शूटर पप्पू निषाद पर हुए जानलेवा हमले में अभियुक्त बनाया गया। पुलिस द्वारा रामभुआल को अभियुक्त बनाए जाने के अलग-अलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। निषाद वोटों की अच्छी समझ रखने वाले एक चिंतक का कहना था कि जिस प्रकार जमुना निषाद को वोट बैंक की खातिर प्रताड़ित किया गया था, वैसी ही हरकत रामभुआल के खिलाफ भी की जा रही है। इसका फायदा आने वाले दिनों में रामभुआल को ही मिलेगा, जैसे जमुना को मिला था।
जमुना की राह पर रामभुआल : करीब दो दशक पहले तक निषाद समाज अलग-अलग पार्टियों के वोट बैंक रहे। जमुना निषाद ने अपनी राजनीतिक करियर के शुरुआत से ही निषादों को एकजुट करने का प्रयास किया।
शुरुआती असफलता के बावजूद जीवट व्यक्तित्व के धनी जमुना ने हार नहीं मानी। उनका मानना था कि वह अभी अपने समाज के लोगों को जगा रहे हैं। जिस दिन निषाद (केवट, मल्लाह, मांझी) जाग जाएगा, अपनी शक्ति पहचान को पहचान जाएगा, उस दिन पूर्वांचल की सभी सीटों को प्रभावित करने की स्थिति में होगा। जमुना ने पिपराईच और पनियरा विधानसभा सीटों पर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर कई बार अपनी किस्मत अजमाई, लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन हर बार मिली हार के बाद, वह दोगुने उत्साह से अपनी मुहिम में जुट जाते थे। लोगों से कहते थे, ‘चिंता मत करो, अभी हमारा समाज धीरे-धीरे जाग रहा है। पूरी तरह से जागने के बाद ही सिस्टम में चेंज होगा। हो सकता है कि अगली बार वह उठ खड़ा हो।’ आखिरकार, 2007 के विधानसभा चुनाव में वह अपने समाज को जगाने में सफल हुए। इस चुनाव में बसपा के टिकट पर जमुना ने तत्कालीन सपा सरकार के मंत्री और लगातार 15 वर्षों से पिपराईच के विधायक रहे जितेंद्र जायसवाल उर्फ पप्पू भैया को पराजित कर दिया।
पप्पू को हराने और निषादों के कद्दावर नेता होने के कारण मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें मत्स्य एवं सैनिक कल्याण राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया। जमुना की इस सफलता ने यहां के मठाधीशों के कान खड़े कर दिए। तब तक जमुना निषादों के रहनुमा बन चुके थे। इधर, मंत्री बनने के बाद भी जमुना अपने समाज के लोगों के सुख-दुख में जाना नहीं भूले थे।
महराजगंज की एक निषाद बालिका के साथ उसी गांव के एक युवक ने दुष्कर्म किया। युवक दबंग परिवार का था। उसके प्रभाव के कारण पुलिस ने मामले की लीपापोती कर दी, जिससे दुष्कर्मी युवक बच गया। बालिका के परिजनों ने पूरे मामले की जानकारी जमुना निषाद को दी। लोगों के सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहने वाले नेता ने महराजगंज में अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक से वापस लौटते समय पुलिस पर उचित कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के लिए महाराजगंज कोतवाली गए। इसी बीच   किसी ने फायरिंग कर दी। इस फायरिंग में एक सिपाही की मौत हो गई। पुलिस ने इस मामले में जमुना निषाद सहित आठ लोगों को अभियुक्त बनाया था। मजे की बात यह है कि इस मामले में जमुना को छोड़ बाकी सात अभियुक्त दो माह के भीतर ही जमानत पर जेल से बाहर हो गए, पर जमुना को 28 माह बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद जमानत मिली। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे मजेदार बात यह रही कि फायरिंग में मारे गए सिपाही के परिवार वालों को सरकार ने 35 लाख रुपये का मुआवजा दिया था, जबकि पीड़ित युवती को सरकार ने भुला दिया। कहते हैं, उसे एक चवन्नी की भी सरकारी मदद नहीं दी गई। महराजगंज कोतवाली कांड के बाद जमुना के खिलाफ हुई पुलिसिया कार्रवाई से निषाद समाज काफी मर्माहत हुआ था।
सबकी नजर वोट पर : जमुना दो साल पूर्व दिवंगत हो गए। निषाद समाज में उनका स्थान लेने की होड़ होने लगी। रामभुआल उस समय भी निषाद समाज के दूसरे नंबर के कद्दावर नेता थे। हालांकि, उनकी वह पूछ नहीं थी। इसी बीच फिल्मों-धारावाहिकों में काम करने वाली काजल निषाद, निर्मला पासवान, सुरेंद्र निषाद जैसे लोग आए, जो किसी भी तरीके से निषाद समाज पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। इनकी नजर में पांच लाख वे वोटर थे, जो एक बार हांक देने से ही उन्हें वोट दे देते, पर ऐसा हो न सका। हालात बदले। रामभुआल को विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति मिली, तो काजल रास्ते में आ गर्इं। यह बात काजल समर्थक भी भली-भांति जानते थे कि काजल चुनाव नहीं जीत सकेंगी, पर रामभुआल चुनाव जीत जाएं, यह भी पप्पू निषाद और काजल निषाद को मंजूर नहीं था।
लिहाजा, काजल निषादों के उस वोट को काटने की एक मशीन बन गई, जिन्होंने पिछले चुनाव में रामभुआल को वोट दिया था। नतीजा सबके सामने है। निषाद वोट बंट गए और काजल और रामभुआल, दोनों ही चुनाव हार गए।
रामभुआल को सहानुभूति : नए समीकरण में रामभुआल को सहानुभूति ज्यादा मिल रही है। वह गोरखपुर सीट से लोकसभा के उम्मीदवार चुने गए हैं। बड़ी चालाकी के साथ उन्होंने 7 मई वाले घटनाक्रम में मीडिया में अपनी बात रखी और अब तो पुलिस के भी कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि रामभुआल को बदले की भावना से फंसाया जा रहा है, जबकि बात उस स्तर की है ही नहीं। एक पुलिस वाले का कहना था, ‘पप्पूआ कौन सुधरल बा? ओके का करल जात बा?’ जाहिर है, पुलिस वालों में भी निषाद वोटरों की ठीक-ठाक संख्या है और ड्यूटी बजाने के बाद वे भी एक सिविलियन ही हो जाते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में थोड़ी चतुराई दिखाते हुए रामभुआल अगर चाह लें, तो वह गोरखपुर जिले के निषाद वोटरों के बीच जमुना के असली उत्तराधिकारी साबित हो सकते हैं। अगर ऐसा हो गया, तो 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम कुछ और भी हो सकते हैं।