आरक्षण कब मिलेगा


आरक्षण और इसकी जरुरत!! एक लम्बे अरसे से हमारे समाज
के जागरूक और जुझारू लोग आगेआने वाली पीड़ी के लिए
आरक्षण की मांग किये जा रहे हैं लेकिन उनका प्रयाश
अबी तक असफल रहा. आरक्षण की लालच में हम लोगों ने
बारी- बारी से सपा,बसपा , भाजपा, कांग्रेस सबकी सरकार बनवाते रहे
उनका झंडा धोते रहे लेकिन किसी ने हमारी एक न सुनी. उलट हमारे
जो पुस्तैनी कारोबार जल- सम्बंधित रोजगार पर दबंग लोगों को कब्ज़ा दिलाते गए.
आज स्थिति ये है की हमारे भाई सिर्फ एक मजदूर की हैसियत से काम करते हैं और
उसका सारा फायादा दुसरी के लोग ले रहे हैं. क्या हमारे समाज में ऐसे धुरंधर
लोगों की कमी है या बुद्धि- विवेक में कहीं कमजोर हैं जो इस काम
को नहीं चला सकते? अगर समाज में बहुमुखी सर्वेक्षण किया जाये सामाजिक,
आर्थिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और रोजगार तो हम लोग अपने को दूसरे
वर्गों की तुलना में काफी पीछे हैं अतः अब हमारे समाज का समुचित विकास
करने के लिए आरक्षण रूपी बैशाखी की जरुरत है. लेकिन इसके साथ-साथ हमारे
युवाओं को इस बात को भी नहीं भुलाना चाहिए की सिर्फ आरक्षण मिल जाने
से समाज का विकास नहीं हो पायेगा. आरक्षण से सिर्फ जो कमजोर , बेसहारा हैं
उनको फायदा मिलना चाहिए जिस हिसाब से हमारी संख्या है महज आरक्षण
मिल जाने से विकास नहीं होगा हमे अपने युवाओं के जेहन में काबिलियत
पैदा करनी पड़ेगी. अतः हमारे युवाओं को आज से ही आरक्षण की आस के
बिना अपने लक्ष्य को भेदने के लिए जुट जाना चाहिए.एकलव्य किसी से आरक्षण
की मांग नहीं किये थे जो अपने को विश्व- विख्यात साबित किये. बहन फूलन
देवी को कोटि- कोटि नमन करता हूँ, जो इतने जुल्म झेलते हुए भी कमीनो को मौत के
घाट पहुंचा दिया, उन्होंने किसी आरक्षण और किसी से भीख नहीं मांगी की मेरे साथ
अत्याचार हुआ है आप लोग न्याय दिलाएं. उन्होंने अपने बाजुओं में इतनी ताकत दिखाई
की लोग थर्रा गए और अपने ही हाथों न्याय कर डाला जो इस देश का कानून
और न्याय व्यवस्था नहीं कर पाती. वह आज के ज़माने की महिला हैं हम लोगों में से
कुछ लोग मिल भी चुके होंगे, आज वो विश्व- विख्यात हैं. जैसे ही उन्होंने समाज के
गरीब, कमजोर , बेसहारा लोगों को मदद करने के लिए एकलव्य सेना का गठन
किया तो समाज के गद्दारों को रास नहीं आया की एक अनपढ़ महिला शोषित समाज
की मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बन जाएगी. अंततः वो एक साजिस की शिकार हुईं. अभी हाल
ही में दिवंगत नेता स्वर्गीय जमुना प्रसाद निषाद जी भी लगातार साजिशों का शिकार बनते रहे
सत्ता पक्ष के मंत्री होते हुए भी सालों जेल में पड़े रहे क्योंकि वो भी बसपा की नीत
अपने समाज को जागरूक करते रहे. जिन लोगों ने भी इस समाज को जगाने का प्रयाश
किया उनको दुसरे वर्गों के लोगों(दबंग/सवर्ण ) का अत्याचार झेलना पड़ा. हमारे नेता भी कभी-
कभी अपने बंधुओं का यथावत सहयोग न पाकर कुछ मुद्दों पर दब जाते हैं ऐसे
हालत में समाज के युवाओं और बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए मूक दर्शक मात्र
बने रहने से काम नहीं चलेगा. इस आधुनिक युग में हमें अपने राजनेताओं को तकनिकी मदद
भी करनी चाहिए, जिससे वो लोगों की साजिस का शिकार न बनें. हमें अपने
समाज में एकलव्य और अर्जुन जैसे निपुण वीर न की अभिमन्यु जैसा नौसिखिया लोगों को र
उतारें और वीरगति प्राप्तt हों. आज हम इस स्थिति में हैं की सभी शेत्रों के माहिर
हमारे समाज में विद्यमान हैं हमें अपने विकास के लिए उनसे सलाह-मशविर
ा करना चाहिए. हमें अपने बच्चों को इस आधुनिक युग में रोजगार परक
शिक्षा दिलानी चाहिए. अभी हमारे समाज के ज्यादातर युवा पारंपरिक शिक्षा ले रहे हैं इससे
भी वो समाज में पिछड़ते जा रहे हैं. आज यह तकनिकी युग है इस युग में
बुलंदी पर पहुँचने के लिए अपनी तकनिकी मजबूत करनी पड़ेगी. आज की हमारी स्थिति ये है
की २५ करोड़ की आबादी होते हुए भी एक आई ए यस अधिकारी देने में हमारा समाज विफल है. मुझे
अपने समाज के युवाओं विशेष और बहुत ही विनम्र निवेदन है की वे अपने छोटे भाई-
बहनों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दें. हमें अपने बच्चों को सान्श्कारिक शिक्षा देने की जरुरत है
क्योंकि आज के स्कूलों में नैतिक शिक्षा/संश्कार के बारे में कुछ नहीं बताया जाता. हमें अपने
युवाओं को इतना निपुण बनाना है की अपना समाज क्या इस देश की बागडोर संभालें. और अगर मन में ठान
लेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब एक निषाद का बेटा मुख्यमंत्र ी और प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठेगा.
संख्या/गणित के आकने यही बताते हैं की अगर ए समाज चेत जाये तो कोई भी पार्टी हमारे सहयोग के
बगैर नहीं चल सकती. फिर ये हमारे नेता गण दुसरे लोगों से भीख मांग रहे हैं इन्हें राजनीति की गिनती भी नह
आरक्षण के लिए भीख मांगने की जरुरत नहीं अपनी ताकत को पहचानने की जरुरत है.
जय हिंद-जय निषाद 
via-facebook rajbahadur nishad

निषाद भाइयो एक हो जाओ फिर सत्ता तुम्हारे हाथ मे।

बिखरी हुई
ताक़त "
हम लोग शिकवा- शिकायतें
ही करते रह गए और दूसरे
अपना काम निकलवा कर ले
गए| हम
साधनों की कमी का ही रोना
रहे और दूसरे सत्ता व शासन में
अपनी पकड़ बनाते चले गए|
उन्होंने अपनी जातीय
पहचान को बढाया और संगठन
बना कर अपने वोटों को एक
जुट करके राजनैतिक
शक्ति हासिल करते हुए
सरकार का हिस्सा बन बैठे,
जब कि हम न तो साधनों में
पीछे थे, न संख्याबल में | न
अनुभवहीन ही थे और न
ही मृतप्राय, फिर भी हमें
कोई राजनैतिक दल गिनने
को तैयार नहीं, शक्ति के रूप
में जानना और हमसे
डरना तो दूर
की कौड़ी रही| कारण स्पष्ट
हैं- बिखरी हुई ताक़त,
लुप्तप्राय् मान- सम्मान और
राजनैतिक इच्छाशक्ति
का घोर अभाव| इसलिए
बिखरे और बँटे हुए लोगों से
किसे और कैसा भय?
अपनी आबादी पर यदि हम
गौर करें
तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश
की करीब ९०
विधानसभा सीटों पर
हमारा वोट है| प्रत्येक सीट
पर कम से कम दस हज़ार से
लेकर एक लाख तक
तुरैहा मछुआरा वोट है| मध्य
यूपी में अन्य
मछुआरा उपजातियों की बदौल
हम ४० सीटों पर, पूर्वांचल
की ८० सीटों पर , बुंदेलखंड
की मछुआ व् नाविक
जातियां ४० सीटों पर एवं
ब्रजक्षेत्र की ५० सीटों पर
मछुआ समाज अपने अन्य
सजातीय वोटों की ताक़त पर
निर्णायक की भूमिका में है|
इस तरह पूरे उत्तरप्रदेश
की ३००
विधानसभा क्षेत्रों में
हमारी हैसियत महत्वपूर्ण है|
यह आंकड़ा सरकार बनाने और
गिराने के लिए पर्याप्त है|
इस संख्याबल से हमारा समाज
भारी उलटफेर कर सकता है|
या कम से कम
इतना तो किया ही जा सकता
कि जो दल हमारी मांगों/
अनुसूचित जातियों के आरक्षण
पर विचार न करे, उसे हरा दें,
हटा दें |
लेकिन ये आंकड़ा सिर्फ
कागज़ी ही है, हकीकत से
कोसों दूर | एक नेता और एक
नियत के अभाव में हमारे
सभी प्रयास अँधेरे में तीर
चलाने जैसे हैं|७ जातियों और
४३ उपजातियों में बँटा यह
समाज अपना एक सर्वमान्य
संगठन तक
नहीं बना पाया है, एक
नेतृत्व की तो बात ही छोड़
दीजिये| अब नेतृत्व के अभाव
में कैसे संघर्ष किया जाए, किन
मुद्दों को उठाया जाए और
किस प्रकार अपनी बात
सरकार में बैठे संवेदनहीन और
सरोकार से दूर रहने वाले
लोगों तक पहुंचाई जाए, ये
बड़ा विचारणीय प्रश्न है | ये
ज्वलंत बिंदु हैं, ये पहेलियाँ हैं
और मुंहबांये खड़े सवाल हैं
समाज के नौजवानों के लिए,
और चुनौतियाँ हैं समाज के हर
उस व्यक्ति के लिए,
जो अपनी जाति से
ज़रा सा भी लगाव रखता है|
अपनी बिखरी ताक़त
को सहेजना होगा|
अपना सोया स्वाभिमान
जगाना होगा| अपनी बात के
लिए मरना सीखना होगा|
अपने विकास के लिए
दूसरों का मुंह ताकना बंद
करना होगा| अपने संगठन से
अपनी ताक़त खुद
बनानी होगी| इसके लिए
अपने मतभेद भुलाने होंगे|
आपसी वैमनस्य को भूलकर
भाईचारे
की भावना को विकसित
करना होगा| अपने तुच्छ
स्वार्थों के लिए समाज
की एकता को दांव पर लगाने
वाले जयचंदों की शिनाख्त कर
उन्हें समाज से
धकियाना होगा| समाज
का हित सोचने वालों को ढूंढ
ढूंढ कर आगे लाना होगा,
निश्चय ही ये
ही वो भागीरथ होंगे,
जो समाज में
क्रान्ति की गंगा ले आयेंगे |
इसके लिए हमें इंतज़ार नहीं,
शुरुआत
करना होगी क्योंकि २०१२
अब ज्यादा दूर नहीं है|
"वो मुतमईन है , पत्थर पिघल
नहीं सकता |
मैं बेक़रार हूँ , आवाज़ में असर के
लिए || writen by vishambhar prashad nishad

निषाद शक्ति

संख्या में ढेर फिर भी हुए ढेर!
दूर -दूर तक इस समाज में
वीरों की कमी दिख
रही है.......
मछुआ समुदाय के सभी बंधुओं
को ज्ञात होना चाहिए
की भारत वर्ष
की जनसँख्या एक अरब इक्कीस
करोर हो गयी है और सुर्वे
रिपोर्ट के अनुसार
लोगों का मानना है की मछुआ
समाज के
लोगों का अनुमानतः २२
प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
इस तरह अगर हम अनुमान
लगाएं तो हमारे समाज
की आबादी २५ करोरे
को पार कर रही है. बड़े-बड़े
नेता, अर्थशास्त्री,
बुद्धिजीवी लोग भारत देश के
विकास की बात करते हैं.
क्या यह संभव हो सकता है
की जिस देश का एक वर्ग
इंतनी संक्या में होते हुए
बी उपेक्षा का शिकार हो,
उसके विकास की बात न करके
देश का विकास
किया जा सकता है? इस समाज
के जो जागरूक भाई लोग हैं
उन्हें अपने भाई-
बहनों की स्थिति का अच्छा अ
है की कितनी जिल्लत
की जिंदगी जी रहे हैं. अगर
इस समय इस समाज में कोई
शोषित समाज है तो वो है
मछुआ समुदाय है. अभी तक इस
समाज में एक वीरांगना बहन
फूलन देवी को छोड
दिया जाय तो दूर-दूर तक
कोई वीर नजर
नहीं आता जो इन २५ करोर
लोगों के हित की बात करे.
ऐसा नहीं है की इस समाज में
नेता नहीं हैं लेकिन
समस्या इस बात की है
की हमारे ये नेता विकास
की परिभाषा ही नहीं जानते.
ये तो बस हमरे कमजोर भाई
लोगों का समूह इकट्ठा करके
दूसरी पार्टी के नेताओं
द्वारा बिक जाते हैं.
जो नेता बा. सा .पा./
सा पा / भा जा पा/कांग्रेस/
आदि पार्टियों नेताओं के
हाथों अपने आप को बेचता है.
वो इस समाज के विकास
की बात किससे कहने जायेगा.
बहतु से नेताओं का कहना है
की हमरे लोग जागरूक नहीं हैं.
यह एक गंभीर समस्या है
लेकिन इसके लिए हमारे समाज
के बुद्धिजीवी लोग
ही जिम्मेदार हैं. अगर आज के
समय में देखा जाये तो इस
समाज के लोग काफी संख्या में
विकास किये और लगभग
सभी विभाग में अछे पदों पैर
तैनात हैं लेकिन अगर उनसे
मछुआ समुदाय के विकास
की बात कही जाये तो वे देश
के विकास की बात करते हैं
जबकि ये भूल जातें हैं की अगर
उनका अपना विकास
नहीं होगा तो वे देश
का क्या विकास करेंगे? कुछ
लोग बड़े पद पैर पहुँच जाने के
बाद अपने बिरादरी के
लोगों से मिलनमे में कतराते हैं
जबकि कोई नाते-रिश्ते
की बात लेकर
वो किसी ठाकुर/ब्रह्मण /
यादव/कुर्मी परिवार में
नहीं जायेंगे. आज के हमारे
समाज के युवा वर्ग शिक्षित
तो हो गए हैं पर
अच्छी शिक्षा हासिल करने के
बाद भी जागरूक
नहीं हो पायें हैं. बहुत से
शिक्षित लोग गरीबों के
मशीहा बनते हैं पर वो सिर्फ
बातों में कबी अपने जीवन
उतरने की कोसिस
भी नहीं करते. इस लोकतंत्र में
अगर इस जाती का विकास
नहीं होगा तो ये समाज
सिर्फ आरक्षण की भीख
मांगता रहेगा और मिलेगा कुछ
भी नहीं.
किसी समय इस वंशज के लोग
शासक/राजा हुआ करते थे पर
आज तो जो संख्याबल में
ज्यादा है उसे शासन
करना चाहिए तबी इनका और
देश का विकास हो सकतअ है.
इस समाज में अनेक विद्वान
पैदा हुए हैं लेकिन आज सब सुख-
सुविधाएँ होते हुए
भी इतनी संख्या में से कितने
लोग आई. ए. यस./ आई. पी.
यस./पी. सी. यस.
अधिकारी बने हैं? महज चंद
लोग होंगे उँगलियों पर गिने
जा सकते हैं. आज के हमरे
युवावों को किस
सुविधा की कमी है/
या उनकी सोच में ही कमी है?
हम अपने आगे aaने
वाली पीढ़ी के लिए कोई
प्लात्फोर्म बना रहे हैं
जो उनके परिश्रम
को सफलता दिला सके?
हमारे समुदाय के जनमानस के
साथ कुछ विशेष समस्याएं हैं
जो विकास की बाधक साबित
हो रही हैं.
१- अशिक्षा
२- बाल-विवाह
३- अन्धविश्वास एवं
आदम्ब्रोम में लिप्त होना
४- नशा के कारन अछि सोच
की कमी
५-शहरों से दूर नदी-तालाबों
के किनारे बसेरा
६- अपने भाई- बंधू
द्वारा शोषित किया जाना
७- आपसी वाद-संवाद की कमी
८- अपने बंधू पर विस्वास न
करना. Writen by raj bahadur nishad