निषाद शक्ति

संख्या में ढेर फिर भी हुए ढेर!
दूर -दूर तक इस समाज में
वीरों की कमी दिख
रही है.......
मछुआ समुदाय के सभी बंधुओं
को ज्ञात होना चाहिए
की भारत वर्ष
की जनसँख्या एक अरब इक्कीस
करोर हो गयी है और सुर्वे
रिपोर्ट के अनुसार
लोगों का मानना है की मछुआ
समाज के
लोगों का अनुमानतः २२
प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
इस तरह अगर हम अनुमान
लगाएं तो हमारे समाज
की आबादी २५ करोरे
को पार कर रही है. बड़े-बड़े
नेता, अर्थशास्त्री,
बुद्धिजीवी लोग भारत देश के
विकास की बात करते हैं.
क्या यह संभव हो सकता है
की जिस देश का एक वर्ग
इंतनी संक्या में होते हुए
बी उपेक्षा का शिकार हो,
उसके विकास की बात न करके
देश का विकास
किया जा सकता है? इस समाज
के जो जागरूक भाई लोग हैं
उन्हें अपने भाई-
बहनों की स्थिति का अच्छा अ
है की कितनी जिल्लत
की जिंदगी जी रहे हैं. अगर
इस समय इस समाज में कोई
शोषित समाज है तो वो है
मछुआ समुदाय है. अभी तक इस
समाज में एक वीरांगना बहन
फूलन देवी को छोड
दिया जाय तो दूर-दूर तक
कोई वीर नजर
नहीं आता जो इन २५ करोर
लोगों के हित की बात करे.
ऐसा नहीं है की इस समाज में
नेता नहीं हैं लेकिन
समस्या इस बात की है
की हमारे ये नेता विकास
की परिभाषा ही नहीं जानते.
ये तो बस हमरे कमजोर भाई
लोगों का समूह इकट्ठा करके
दूसरी पार्टी के नेताओं
द्वारा बिक जाते हैं.
जो नेता बा. सा .पा./
सा पा / भा जा पा/कांग्रेस/
आदि पार्टियों नेताओं के
हाथों अपने आप को बेचता है.
वो इस समाज के विकास
की बात किससे कहने जायेगा.
बहतु से नेताओं का कहना है
की हमरे लोग जागरूक नहीं हैं.
यह एक गंभीर समस्या है
लेकिन इसके लिए हमारे समाज
के बुद्धिजीवी लोग
ही जिम्मेदार हैं. अगर आज के
समय में देखा जाये तो इस
समाज के लोग काफी संख्या में
विकास किये और लगभग
सभी विभाग में अछे पदों पैर
तैनात हैं लेकिन अगर उनसे
मछुआ समुदाय के विकास
की बात कही जाये तो वे देश
के विकास की बात करते हैं
जबकि ये भूल जातें हैं की अगर
उनका अपना विकास
नहीं होगा तो वे देश
का क्या विकास करेंगे? कुछ
लोग बड़े पद पैर पहुँच जाने के
बाद अपने बिरादरी के
लोगों से मिलनमे में कतराते हैं
जबकि कोई नाते-रिश्ते
की बात लेकर
वो किसी ठाकुर/ब्रह्मण /
यादव/कुर्मी परिवार में
नहीं जायेंगे. आज के हमारे
समाज के युवा वर्ग शिक्षित
तो हो गए हैं पर
अच्छी शिक्षा हासिल करने के
बाद भी जागरूक
नहीं हो पायें हैं. बहुत से
शिक्षित लोग गरीबों के
मशीहा बनते हैं पर वो सिर्फ
बातों में कबी अपने जीवन
उतरने की कोसिस
भी नहीं करते. इस लोकतंत्र में
अगर इस जाती का विकास
नहीं होगा तो ये समाज
सिर्फ आरक्षण की भीख
मांगता रहेगा और मिलेगा कुछ
भी नहीं.
किसी समय इस वंशज के लोग
शासक/राजा हुआ करते थे पर
आज तो जो संख्याबल में
ज्यादा है उसे शासन
करना चाहिए तबी इनका और
देश का विकास हो सकतअ है.
इस समाज में अनेक विद्वान
पैदा हुए हैं लेकिन आज सब सुख-
सुविधाएँ होते हुए
भी इतनी संख्या में से कितने
लोग आई. ए. यस./ आई. पी.
यस./पी. सी. यस.
अधिकारी बने हैं? महज चंद
लोग होंगे उँगलियों पर गिने
जा सकते हैं. आज के हमरे
युवावों को किस
सुविधा की कमी है/
या उनकी सोच में ही कमी है?
हम अपने आगे aaने
वाली पीढ़ी के लिए कोई
प्लात्फोर्म बना रहे हैं
जो उनके परिश्रम
को सफलता दिला सके?
हमारे समुदाय के जनमानस के
साथ कुछ विशेष समस्याएं हैं
जो विकास की बाधक साबित
हो रही हैं.
१- अशिक्षा
२- बाल-विवाह
३- अन्धविश्वास एवं
आदम्ब्रोम में लिप्त होना
४- नशा के कारन अछि सोच
की कमी
५-शहरों से दूर नदी-तालाबों
के किनारे बसेरा
६- अपने भाई- बंधू
द्वारा शोषित किया जाना
७- आपसी वाद-संवाद की कमी
८- अपने बंधू पर विस्वास न
करना. Writen by raj bahadur nishad

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