आरक्षण और इसकी जरुरत!!

एक लम्बे अरसे से हमारे समाज के जागरूक और जुझारू लोग आगे आने वाली पीड़ी के लिए आरक्षण की मांग किये जा रहे हैं लेकिन उनका प्रयाश अबी तक असफल रहा. आरक्षण की लालच में हम लोगों ने बारी - बारी से सपा, बसपा , भाजपा, कांग्रेस सबकी सरकार बनवाते रहे उनका झंडा धोते रहे लेकिन किसी ने हमारी एक न सुनी. उलट हमारे जो पुस्तैनी कारोबार जल-सम्बंधित रोजगार पर दबंग लोगों को कब्ज़ा दिलाते गए. आज स्थिति ये है की हमारे भाई सिर्फ एक मजदूर की हैसियत से काम करते हैं और उसका सारा फायादा दुसरी समुदाय के लोग ले रहे हैं. क्या हमारे समाज में ऐसे धुरंधर लोगों की कमी है या बुद्धि-विवेक में कहीं कमजोर हैं जो इस काम को नहीं चला सकते? अगर समाज में बहुमुखी सर्वेक्षण किया जाये सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और रोजगार तो हम लोग अपने को दूसरे वर्गों की तुलना में काफी पीछे हैं अतः अब हमारे समाज का समुचित विकास करने के लिए आरक्षण रूपी बैशाखी की जरुरत है. लेकिन इसके साथ-साथ हमारे युवाओं को इस बात को भी नहीं भुलाना चाहिए की सिर्फ आरक्षण मिल जाने से समाज का विकास नहीं हो पायेगा. आरक्षण से सिर्फ जो कमजोर , बेसहारा हैं उनको फायदा मिलना चाहिए. जिस हिसाब से हमारी संख्या है महज आरक्षण मिल जाने से विकास नहीं होगा हमे अपने युवाओं के जेहन में काबिलियत पैदा करनी पड़ेगी. अतः हमारे युवाओं को आज से ही आरक्षण की आस के बिना अपने लक्ष्य को भेदने के लिए जुट जाना चाहिए. एकलव्य किसी से आरक्षण की मांग नहीं किये थे जो अपने को विश्व - विख्यात साबित किये. बहन फूलन देवी को कोटि- कोटि नमन करता हूँ, जो इतने जुल्म झेलते हुए भी कमीनो को मौत के घाट पहुंचा दिया, उन्होंने किसी आरक्षण और किसी से भीख नहीं मांगी की मेरे साथ अत्याचार हुआ है आप लोग न्याय दिलाएं. उन्होंने अपने बाजुओं में इतनी ताकत दिखाई की लोग थर्रा गए और अपने ही हाथों न्याय कर डाला जो इस देश का कानून और न्याय व्यवस्था नहीं कर पाती. वह आज के ज़माने की महिला हैं हम लोगों में से कुछ लोग मिल भी चुके होंगे, आज वो विश्व- विख्यात हैं. जैसे ही उन्होंने समाज के गरीब, कमजोर , बेसहारा लोगों को मदद करने के लिए एकलव्य सेना का गठन किया तो समाज के गद्दारों को रास नहीं आया की एक अनपढ़ महिला शोषित समाज की मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बन जाएगी. अंततः वो एक साजिस की शिकार हुईं. अभी हाल ही में दिवंगत नेता स्वर्गीय जमुना प्रसाद निषाद जी भी लगातार साजिशों का शिकार बनते रहे सत्ता पक्ष के मंत्री होते हुए भी सालों जेल में पड़े रहे क्योंकि वो भी बसपा की नीतियों की गुलामी नहीं की और अपने समाज को जागरूक करते रहे. जिन लोगों ने भी इस समाज को जगाने का प्रयाश किया उनको दुसरे वर्गों के लोगों (दबंग/सवर्ण ) का अत्याचार झेलना पड़ा. हमारे नेता भी कभी-कभी अपने बंधुओं का यथावत सहयोग न पाकर कुछ मुद्दों पर दब जाते हैं ऐसे हालत में समाज के युवाओं और बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए मूक दर्शक मात्र बने रहने से काम नहीं चलेगा. इस आधुनिक युग में हमें अपने राजनेताओं को तकनिकी मदद भी करनी चाहिए, जिससे वो लोगों की साजिस का शिकार न बनें. हमें अपने समाज में एकलव्य और अर्जुन जैसे निपुण वीर न की अभिमन्यु जैसा नौसिखिया लोगों को राजनीति में उतारें और वीरगति प्राप्तt हों. आज हम इस स्थिति में हैं की सभी शेत्रों के माहिर हमारे समाज में विद्यमान हैं हमें अपने विकास के लिए उनसे सलाह-मशविरा करना चाहिए. हमें अपने बच्चों को इस आधुनिक युग में रोजगार परक शिक्षा दिलानी चाहिए. अभी हमारे समाज के ज्यादातर युवा पारंपरिक शिक्षा ले रहे हैं इससे भी वो समाज में पिछड़ते जा रहे हैं. आज यह तकनिकी युग है इस युग में बुलंदी पर पहुँचने के लिए अपनी तकनिकी मजबूत करनी पड़ेगी. आज की हमारी स्थिति ये है की २५ करोड़ की आबादी होते हुए भी एक आई ए यस अधिकारी देने में हमारा समाज विफल है. मुझे अपने समाज के युवाओं विशेष और बहुत ही विनम्र निवेदन है की वे अपने छोटे भाई- बहनों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दें. हमें अपने बच्चों को सान्श्कारिक शिक्षा देने की जरुरत है क्योंकि आज के स्कूलों में नैतिक शिक्षा /संश्कार के बारे में कुछ नहीं बताया जाता. हमें अपने युवाओं को इतना निपुण बनाना है की अपना समाज क्या इस देश की बागडोर संभालें. और अगर मन में ठान लेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब एक निषाद का बेटा मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठेगा. संख्या/गणित के आकने यही बताते हैं की अगर ए समाज चेत जाये तो कोई भी पार्टी हमारे सहयोग के बगैर नहीं चल सकती. फिर ये हमारे नेता गण दुसरे लोगों से भीख मांग रहे हैं इन्हें राजनीति की गिनती भी नहीं आती क्या? आरक्षण के लिए भीख मांगने की जरुरत नहीं अपनी ताकत को पहचानने की जरुरत है....Raj Bahadur Nishad

निषादो को छलती कांग्रेस

कांग्रेस २००३ से मछुआ समुदाय को छलती चली आ रही है| १६ पिछड़ी जातियों को अनुसूचित
जातियों का दर्ज़ा देने सम्बन्धी प्रस्ताव को कांग्रेस ही लटकाए बैठी रही| जब कि मुलायम
सिंह जी की सरकार में उक्त प्रस्ताव चार दफे केंद्र को संस्तुति सहित भेजा गया| मायावती जी ने तो हद
ही कर दी, सरकार बनाने के २२ दिनों के भीतर मूल प्रस्ताव वापस मंगाकर निरस्त
करवा दिया, जैसे बहन जी इसी मुद्दे पर जीत कर आयीं हों| जब समाज ने दबाब बनाया तो महज २
पन्नो की चिठ्ठी केंद्र को भेजकर बसपा ने पिंड छुढ़ा लिया और गेंद फिर से केंद्र के पाले में डाल दी|
हमें फ़ुटबाल समझ कर इन लोगों ने अपने गोल मारे और जीतने पर अपनी फ़तेह
का जश्न मनाने चले गए, हमारी खाली गेंदे मैदान में अपनी तकदीर बदलने वाले मसीहा की अब तलक
मुन्तजिर रही हैं| अब कांग्रेस फिर से धोखा देने की तैयारी में है |दर असल कांग्रेस हमेशा से ही नज़र अंदाज़
करने की सियासत करती चली आई है| नेहरु के सामने जिन्ना को नज़र  अंदाज़ किया, सरदार
पटेल के सामने बाबा साहब डाo आंबेडकर को नज़र अंदाज़ किया, लोहिया को नज़र अंदाज़ किया,
इतना ही नहीं मुसलमानों को तो हमेशा से ही नज़र अंदाज़ किया और आज भी कर रही है|
वर्ना कोई वाजिब वज़ह नहीं है जो सच्चर कमिटी व रंग नाथ मिश्र कमिटी कांग्रेस को दोष
देती| आज बहुसंख्यक दलितों के सामने अल्पसंख्यक दलितों को उपेक्षित किया जा रहा है|
मीरा कुमार और सुशील शिंदे जैसे नेताओं के दबाब में मछुआ आरक्षण आज भी लंबित है| यदि कांग्रेस
के नेताओं में ज़रा भी शर्मोहया बाक़ी है तो केंद्र सरकार भारत रत्न स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के
मछुआ समाज को अनुसूचित जाति का दर्ज़ा दिलाने सम्बन्धी ख्वाब को जल्द से जल्द पूरा करे| कांग्रेस
की नीति और नियत उसी दिन जगज़ाहिर हो गयी थी, जब आरक्षण की आवाज़ उठाने का अंजाम कई निषाद
नेताओं ने कांग्रेस से अपने निष्कासन के रूप में झेला था| मछुआरा समुदाय अब कांग्रेस और बसपा के
बहकावे में आनेवाला कतई नहीं है और अपने १०% वोट का सही वक़्त पर सही इस्तेमाल करेगा एवं
अपने मछुआ समुदाय के हित की बात करने वाले को पहचानने में ज़रा भी भूल नहीं करेगा|
writen by - Vishambhar Prasad Nishad

आरक्षण कब मिलेगा


आरक्षण और इसकी जरुरत!! एक लम्बे अरसे से हमारे समाज
के जागरूक और जुझारू लोग आगेआने वाली पीड़ी के लिए
आरक्षण की मांग किये जा रहे हैं लेकिन उनका प्रयाश
अबी तक असफल रहा. आरक्षण की लालच में हम लोगों ने
बारी- बारी से सपा,बसपा , भाजपा, कांग्रेस सबकी सरकार बनवाते रहे
उनका झंडा धोते रहे लेकिन किसी ने हमारी एक न सुनी. उलट हमारे
जो पुस्तैनी कारोबार जल- सम्बंधित रोजगार पर दबंग लोगों को कब्ज़ा दिलाते गए.
आज स्थिति ये है की हमारे भाई सिर्फ एक मजदूर की हैसियत से काम करते हैं और
उसका सारा फायादा दुसरी के लोग ले रहे हैं. क्या हमारे समाज में ऐसे धुरंधर
लोगों की कमी है या बुद्धि- विवेक में कहीं कमजोर हैं जो इस काम
को नहीं चला सकते? अगर समाज में बहुमुखी सर्वेक्षण किया जाये सामाजिक,
आर्थिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और रोजगार तो हम लोग अपने को दूसरे
वर्गों की तुलना में काफी पीछे हैं अतः अब हमारे समाज का समुचित विकास
करने के लिए आरक्षण रूपी बैशाखी की जरुरत है. लेकिन इसके साथ-साथ हमारे
युवाओं को इस बात को भी नहीं भुलाना चाहिए की सिर्फ आरक्षण मिल जाने
से समाज का विकास नहीं हो पायेगा. आरक्षण से सिर्फ जो कमजोर , बेसहारा हैं
उनको फायदा मिलना चाहिए जिस हिसाब से हमारी संख्या है महज आरक्षण
मिल जाने से विकास नहीं होगा हमे अपने युवाओं के जेहन में काबिलियत
पैदा करनी पड़ेगी. अतः हमारे युवाओं को आज से ही आरक्षण की आस के
बिना अपने लक्ष्य को भेदने के लिए जुट जाना चाहिए.एकलव्य किसी से आरक्षण
की मांग नहीं किये थे जो अपने को विश्व- विख्यात साबित किये. बहन फूलन
देवी को कोटि- कोटि नमन करता हूँ, जो इतने जुल्म झेलते हुए भी कमीनो को मौत के
घाट पहुंचा दिया, उन्होंने किसी आरक्षण और किसी से भीख नहीं मांगी की मेरे साथ
अत्याचार हुआ है आप लोग न्याय दिलाएं. उन्होंने अपने बाजुओं में इतनी ताकत दिखाई
की लोग थर्रा गए और अपने ही हाथों न्याय कर डाला जो इस देश का कानून
और न्याय व्यवस्था नहीं कर पाती. वह आज के ज़माने की महिला हैं हम लोगों में से
कुछ लोग मिल भी चुके होंगे, आज वो विश्व- विख्यात हैं. जैसे ही उन्होंने समाज के
गरीब, कमजोर , बेसहारा लोगों को मदद करने के लिए एकलव्य सेना का गठन
किया तो समाज के गद्दारों को रास नहीं आया की एक अनपढ़ महिला शोषित समाज
की मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बन जाएगी. अंततः वो एक साजिस की शिकार हुईं. अभी हाल
ही में दिवंगत नेता स्वर्गीय जमुना प्रसाद निषाद जी भी लगातार साजिशों का शिकार बनते रहे
सत्ता पक्ष के मंत्री होते हुए भी सालों जेल में पड़े रहे क्योंकि वो भी बसपा की नीत
अपने समाज को जागरूक करते रहे. जिन लोगों ने भी इस समाज को जगाने का प्रयाश
किया उनको दुसरे वर्गों के लोगों(दबंग/सवर्ण ) का अत्याचार झेलना पड़ा. हमारे नेता भी कभी-
कभी अपने बंधुओं का यथावत सहयोग न पाकर कुछ मुद्दों पर दब जाते हैं ऐसे
हालत में समाज के युवाओं और बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए मूक दर्शक मात्र
बने रहने से काम नहीं चलेगा. इस आधुनिक युग में हमें अपने राजनेताओं को तकनिकी मदद
भी करनी चाहिए, जिससे वो लोगों की साजिस का शिकार न बनें. हमें अपने
समाज में एकलव्य और अर्जुन जैसे निपुण वीर न की अभिमन्यु जैसा नौसिखिया लोगों को र
उतारें और वीरगति प्राप्तt हों. आज हम इस स्थिति में हैं की सभी शेत्रों के माहिर
हमारे समाज में विद्यमान हैं हमें अपने विकास के लिए उनसे सलाह-मशविर
ा करना चाहिए. हमें अपने बच्चों को इस आधुनिक युग में रोजगार परक
शिक्षा दिलानी चाहिए. अभी हमारे समाज के ज्यादातर युवा पारंपरिक शिक्षा ले रहे हैं इससे
भी वो समाज में पिछड़ते जा रहे हैं. आज यह तकनिकी युग है इस युग में
बुलंदी पर पहुँचने के लिए अपनी तकनिकी मजबूत करनी पड़ेगी. आज की हमारी स्थिति ये है
की २५ करोड़ की आबादी होते हुए भी एक आई ए यस अधिकारी देने में हमारा समाज विफल है. मुझे
अपने समाज के युवाओं विशेष और बहुत ही विनम्र निवेदन है की वे अपने छोटे भाई-
बहनों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दें. हमें अपने बच्चों को सान्श्कारिक शिक्षा देने की जरुरत है
क्योंकि आज के स्कूलों में नैतिक शिक्षा/संश्कार के बारे में कुछ नहीं बताया जाता. हमें अपने
युवाओं को इतना निपुण बनाना है की अपना समाज क्या इस देश की बागडोर संभालें. और अगर मन में ठान
लेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब एक निषाद का बेटा मुख्यमंत्र ी और प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठेगा.
संख्या/गणित के आकने यही बताते हैं की अगर ए समाज चेत जाये तो कोई भी पार्टी हमारे सहयोग के
बगैर नहीं चल सकती. फिर ये हमारे नेता गण दुसरे लोगों से भीख मांग रहे हैं इन्हें राजनीति की गिनती भी नह
आरक्षण के लिए भीख मांगने की जरुरत नहीं अपनी ताकत को पहचानने की जरुरत है.
जय हिंद-जय निषाद 
via-facebook rajbahadur nishad

निषाद भाइयो एक हो जाओ फिर सत्ता तुम्हारे हाथ मे।

बिखरी हुई
ताक़त "
हम लोग शिकवा- शिकायतें
ही करते रह गए और दूसरे
अपना काम निकलवा कर ले
गए| हम
साधनों की कमी का ही रोना
रहे और दूसरे सत्ता व शासन में
अपनी पकड़ बनाते चले गए|
उन्होंने अपनी जातीय
पहचान को बढाया और संगठन
बना कर अपने वोटों को एक
जुट करके राजनैतिक
शक्ति हासिल करते हुए
सरकार का हिस्सा बन बैठे,
जब कि हम न तो साधनों में
पीछे थे, न संख्याबल में | न
अनुभवहीन ही थे और न
ही मृतप्राय, फिर भी हमें
कोई राजनैतिक दल गिनने
को तैयार नहीं, शक्ति के रूप
में जानना और हमसे
डरना तो दूर
की कौड़ी रही| कारण स्पष्ट
हैं- बिखरी हुई ताक़त,
लुप्तप्राय् मान- सम्मान और
राजनैतिक इच्छाशक्ति
का घोर अभाव| इसलिए
बिखरे और बँटे हुए लोगों से
किसे और कैसा भय?
अपनी आबादी पर यदि हम
गौर करें
तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश
की करीब ९०
विधानसभा सीटों पर
हमारा वोट है| प्रत्येक सीट
पर कम से कम दस हज़ार से
लेकर एक लाख तक
तुरैहा मछुआरा वोट है| मध्य
यूपी में अन्य
मछुआरा उपजातियों की बदौल
हम ४० सीटों पर, पूर्वांचल
की ८० सीटों पर , बुंदेलखंड
की मछुआ व् नाविक
जातियां ४० सीटों पर एवं
ब्रजक्षेत्र की ५० सीटों पर
मछुआ समाज अपने अन्य
सजातीय वोटों की ताक़त पर
निर्णायक की भूमिका में है|
इस तरह पूरे उत्तरप्रदेश
की ३००
विधानसभा क्षेत्रों में
हमारी हैसियत महत्वपूर्ण है|
यह आंकड़ा सरकार बनाने और
गिराने के लिए पर्याप्त है|
इस संख्याबल से हमारा समाज
भारी उलटफेर कर सकता है|
या कम से कम
इतना तो किया ही जा सकता
कि जो दल हमारी मांगों/
अनुसूचित जातियों के आरक्षण
पर विचार न करे, उसे हरा दें,
हटा दें |
लेकिन ये आंकड़ा सिर्फ
कागज़ी ही है, हकीकत से
कोसों दूर | एक नेता और एक
नियत के अभाव में हमारे
सभी प्रयास अँधेरे में तीर
चलाने जैसे हैं|७ जातियों और
४३ उपजातियों में बँटा यह
समाज अपना एक सर्वमान्य
संगठन तक
नहीं बना पाया है, एक
नेतृत्व की तो बात ही छोड़
दीजिये| अब नेतृत्व के अभाव
में कैसे संघर्ष किया जाए, किन
मुद्दों को उठाया जाए और
किस प्रकार अपनी बात
सरकार में बैठे संवेदनहीन और
सरोकार से दूर रहने वाले
लोगों तक पहुंचाई जाए, ये
बड़ा विचारणीय प्रश्न है | ये
ज्वलंत बिंदु हैं, ये पहेलियाँ हैं
और मुंहबांये खड़े सवाल हैं
समाज के नौजवानों के लिए,
और चुनौतियाँ हैं समाज के हर
उस व्यक्ति के लिए,
जो अपनी जाति से
ज़रा सा भी लगाव रखता है|
अपनी बिखरी ताक़त
को सहेजना होगा|
अपना सोया स्वाभिमान
जगाना होगा| अपनी बात के
लिए मरना सीखना होगा|
अपने विकास के लिए
दूसरों का मुंह ताकना बंद
करना होगा| अपने संगठन से
अपनी ताक़त खुद
बनानी होगी| इसके लिए
अपने मतभेद भुलाने होंगे|
आपसी वैमनस्य को भूलकर
भाईचारे
की भावना को विकसित
करना होगा| अपने तुच्छ
स्वार्थों के लिए समाज
की एकता को दांव पर लगाने
वाले जयचंदों की शिनाख्त कर
उन्हें समाज से
धकियाना होगा| समाज
का हित सोचने वालों को ढूंढ
ढूंढ कर आगे लाना होगा,
निश्चय ही ये
ही वो भागीरथ होंगे,
जो समाज में
क्रान्ति की गंगा ले आयेंगे |
इसके लिए हमें इंतज़ार नहीं,
शुरुआत
करना होगी क्योंकि २०१२
अब ज्यादा दूर नहीं है|
"वो मुतमईन है , पत्थर पिघल
नहीं सकता |
मैं बेक़रार हूँ , आवाज़ में असर के
लिए || writen by vishambhar prashad nishad

निषाद शक्ति

संख्या में ढेर फिर भी हुए ढेर!
दूर -दूर तक इस समाज में
वीरों की कमी दिख
रही है.......
मछुआ समुदाय के सभी बंधुओं
को ज्ञात होना चाहिए
की भारत वर्ष
की जनसँख्या एक अरब इक्कीस
करोर हो गयी है और सुर्वे
रिपोर्ट के अनुसार
लोगों का मानना है की मछुआ
समाज के
लोगों का अनुमानतः २२
प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
इस तरह अगर हम अनुमान
लगाएं तो हमारे समाज
की आबादी २५ करोरे
को पार कर रही है. बड़े-बड़े
नेता, अर्थशास्त्री,
बुद्धिजीवी लोग भारत देश के
विकास की बात करते हैं.
क्या यह संभव हो सकता है
की जिस देश का एक वर्ग
इंतनी संक्या में होते हुए
बी उपेक्षा का शिकार हो,
उसके विकास की बात न करके
देश का विकास
किया जा सकता है? इस समाज
के जो जागरूक भाई लोग हैं
उन्हें अपने भाई-
बहनों की स्थिति का अच्छा अ
है की कितनी जिल्लत
की जिंदगी जी रहे हैं. अगर
इस समय इस समाज में कोई
शोषित समाज है तो वो है
मछुआ समुदाय है. अभी तक इस
समाज में एक वीरांगना बहन
फूलन देवी को छोड
दिया जाय तो दूर-दूर तक
कोई वीर नजर
नहीं आता जो इन २५ करोर
लोगों के हित की बात करे.
ऐसा नहीं है की इस समाज में
नेता नहीं हैं लेकिन
समस्या इस बात की है
की हमारे ये नेता विकास
की परिभाषा ही नहीं जानते.
ये तो बस हमरे कमजोर भाई
लोगों का समूह इकट्ठा करके
दूसरी पार्टी के नेताओं
द्वारा बिक जाते हैं.
जो नेता बा. सा .पा./
सा पा / भा जा पा/कांग्रेस/
आदि पार्टियों नेताओं के
हाथों अपने आप को बेचता है.
वो इस समाज के विकास
की बात किससे कहने जायेगा.
बहतु से नेताओं का कहना है
की हमरे लोग जागरूक नहीं हैं.
यह एक गंभीर समस्या है
लेकिन इसके लिए हमारे समाज
के बुद्धिजीवी लोग
ही जिम्मेदार हैं. अगर आज के
समय में देखा जाये तो इस
समाज के लोग काफी संख्या में
विकास किये और लगभग
सभी विभाग में अछे पदों पैर
तैनात हैं लेकिन अगर उनसे
मछुआ समुदाय के विकास
की बात कही जाये तो वे देश
के विकास की बात करते हैं
जबकि ये भूल जातें हैं की अगर
उनका अपना विकास
नहीं होगा तो वे देश
का क्या विकास करेंगे? कुछ
लोग बड़े पद पैर पहुँच जाने के
बाद अपने बिरादरी के
लोगों से मिलनमे में कतराते हैं
जबकि कोई नाते-रिश्ते
की बात लेकर
वो किसी ठाकुर/ब्रह्मण /
यादव/कुर्मी परिवार में
नहीं जायेंगे. आज के हमारे
समाज के युवा वर्ग शिक्षित
तो हो गए हैं पर
अच्छी शिक्षा हासिल करने के
बाद भी जागरूक
नहीं हो पायें हैं. बहुत से
शिक्षित लोग गरीबों के
मशीहा बनते हैं पर वो सिर्फ
बातों में कबी अपने जीवन
उतरने की कोसिस
भी नहीं करते. इस लोकतंत्र में
अगर इस जाती का विकास
नहीं होगा तो ये समाज
सिर्फ आरक्षण की भीख
मांगता रहेगा और मिलेगा कुछ
भी नहीं.
किसी समय इस वंशज के लोग
शासक/राजा हुआ करते थे पर
आज तो जो संख्याबल में
ज्यादा है उसे शासन
करना चाहिए तबी इनका और
देश का विकास हो सकतअ है.
इस समाज में अनेक विद्वान
पैदा हुए हैं लेकिन आज सब सुख-
सुविधाएँ होते हुए
भी इतनी संख्या में से कितने
लोग आई. ए. यस./ आई. पी.
यस./पी. सी. यस.
अधिकारी बने हैं? महज चंद
लोग होंगे उँगलियों पर गिने
जा सकते हैं. आज के हमरे
युवावों को किस
सुविधा की कमी है/
या उनकी सोच में ही कमी है?
हम अपने आगे aaने
वाली पीढ़ी के लिए कोई
प्लात्फोर्म बना रहे हैं
जो उनके परिश्रम
को सफलता दिला सके?
हमारे समुदाय के जनमानस के
साथ कुछ विशेष समस्याएं हैं
जो विकास की बाधक साबित
हो रही हैं.
१- अशिक्षा
२- बाल-विवाह
३- अन्धविश्वास एवं
आदम्ब्रोम में लिप्त होना
४- नशा के कारन अछि सोच
की कमी
५-शहरों से दूर नदी-तालाबों
के किनारे बसेरा
६- अपने भाई- बंधू
द्वारा शोषित किया जाना
७- आपसी वाद-संवाद की कमी
८- अपने बंधू पर विस्वास न
करना. Writen by raj bahadur nishad

निषाद-कश्यप

निषाद
जाति भारतवर्ष
की मूल एवं
प्राचीनतम
जातियों में से एक
हैं। रामायणकाल में
निषादों की अपनी अलग
सत्ता एवं
संस्कृति थी , एवं
निषाद एक
जाति नहीं बल्कि चारों वर्ण
से अलग "पंचम वर्ण"
के नाम से
जाना जाता था।
आदिकवि महर्षि बाल्मीकि,
विश्वगुरू
महर्षि वेद व्यास,
भक्त प्रह्लाद और
रामसखा महाराज
श्रीगुहराज निषाद
जैसे महान आत्माओं
ने इस जाति सुशोभित
किया है।
स्वतंत्रता आन्दोलन
में भी इस समुदाय के
शूरवीरों ने बढ़ -
चढ़ कर हिस्सा लिया,
लेकिन आज इस समुदाय
के लोंगो में
वैचारिक भिन्नता के
कारण समुदाय
का विकास अवरुद्ध
सा हो गया है। उप -
जाति, कुरी, गौत्र के
आधार पर समुदाय
का विखंडन हो रहा है,
फलतः समुदाय के
सामाजिक , धार्मिक
आर्थिक एवं
राजनैतिक मान-
मर्यादा में ह्रास
हो रहा है।
इसी वैचारिक
भिन्नता का उन्मूलन
एवं उप -जाति, कुरी,
गौत्र के आधार
सामाजिक विखराव
को रोकने हेतु एक
प्रयास
किया जा रहा है। इस
ब्लोग के माध्यम से
हम अपने समुदाय के
सभी सदस्यों को भाषा,
क्षेत्र, उप-जाति,
कुरी, गौत्र जैसे
भेदभाव मिटाकर
आपसी एकता को मजबूत
करने का अनुरोध करते
हैं।
निषाद समुदाय
भाषा एवं क्षेत्र के
अनुसार विभिन्न
नामों से जाने जाते
है , जैसे कश्यप,
मल्लाह, बाथम,
रायकवार इत्यादि।
via-nishadkashyap.blogspot.com

आरक्षण के नाव को पाकर हरिजन तो सागर पार होगये लेकिन नाव खेनेवाले माझी खुद भवसागर मे डुब रहे है।

टूटी खटिया,फूटी हाँडी एक अदद
फटी कथरी जिस पर हर हफ्ते ही पैबंद
लगाया जाता है । पेट फुलाए, दुबले -
पतले गंदे -अधनंगे बच्चे जिनको इस
एक कथरी पर इक साथ सुलाया जाता है ।
दिन भर में बस एक जून ही घर में
खाना पकता है दिन भर में बस एक बार
ये चूल्हा जलाया जाता है। देश चलाने
वालों एक दिन मल्लाह-केवट बस्ती में आकर
देखो घोर अभावों में भी जीवन कैसे
बिताया जाता है। लालकिले से केवट -
बस्ती की दूरी को जल्दी पाटो बापू
का इक मन्त्र आज फिर -फिर यह
दोहराता है । मल्लाहो की स्थिती कितनी बद से बत्तर है की वे अपनी आजीवका भी चलाना मुस्किल है। आरक्षण के नाव को पाकर हरिजन सागर पार हो गये लेकिन नाव खेनेवाले माझी खुद भवसागर मे डुब रहे है जिसे बचाना होगा। राज चलाने वाले नेता इनका भी ध्यान दे अन्यथा मल्लाहो की नैया डुब न जाय। कैसे राजा है जिनके राज मे प्रजा अभाव का जीवन जी रहा है। राज चलाओ और अपनी नजर इधर भी लगावो।

मल्लाहो के रोटी छीनती बसपा सरकार। बालु खनन पर दबंगो का राज।

‘इलाहाबाद के शंकरगढ़, जसरा,
बरगढ़ और घूरपुर मिर्जापुर के चुनार, अदलपुरा, गांगपुर वाराणसी के तातेपुर, टीकरी तथा लखनउ,जौनपुर,चंदौली, भदोही बालू
खनन माफियाओ राज है। बालु खनन तथा नदी मे आरपार कराने का अधिकार सिर्फ मल्लाहो का है परन्तु बसपा सरकार के आते ही दबंगो तथा उच्च बिरादरी के लोगो को बालु खनन का ठेका अधिकारीक तौर पर दिया जा रहा है। सरकार उच्च जाती के लोगो को ठेका देकर मल्लाहो की रोटी छीन रही है। खबर के विश्लेषण पर आने से पहले
इस क्षेत्र के आर्थिक राजनीतिक
समीकरण को जान लेना जरूरी है। घूरपुर,
शंकरगढ़, जसरा और बरगढ़ ब्लाक
यमुना नदी के तटवर्ती क्षेत्र हैं,
जहां एक ओर भुखमरी के कगार पर निषाद मल्लाह जाति के लोग हैं,
जिनके जीवन का आर्थिक आधार नदी, बालू
और नदी किनारे खेती है
तो वहीं दूसरी ओर यह पूरा क्षेत्र
बालू और पत्थर के अवैध खनन के लिए
भी मुफीद है। जिस पर मौजूदा समय में
बसपा के सांसद कपिल
मुनि करवरिया का एकक्षत्र राज है।
करवरिया जी अखिल भारतीय ब्राह्मण
महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं
तथा बसपा में आने से पहले भाजपा में
थे और इन्हें ही इस क्षेत्र में
बजरंग दल खड़ा करने का श्रेय
भी जाता है। वहीं इनके एक भाई
भाजपा से अभी-अभी विधायक हुए हैं।
करवरिया के अवैध बालू खनन,
जिसका सलाना टर्न ओवर करोड़ों का है,
के खिलाफ वहां के मल्लाह
जाति के लोग लंबे समय से कम्युनिस्ट
पार्टियों के नेतृत्व में आंदोलनरत
हैं। जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने
भी तल्ख टिप्पणी करते हुए माफिया के
खिलाफ कार्रवाई और अवैध रूप से चल
रही बालू मशीनों को तत्काल बंद करने
का आदेश दिया था। न्यायालय में
अपनी हार और सड़क पर गरीब -
गुरबों का कम्युनिस्ट पार्टियों के
नेतृत्व में बढ़ती जन गोलबंदी से
निपटने का रास्ता उन्होंने इस पूरे
आंदोलन को नक्सलवाद के हव्वे से
जोड़ने में निकाला , जिसमें
मीडिया का एक हिस्सा उनका सबसे
विश्वसनीय सहयोगी बनकर उभरा है। आज
स्थिति इतनी हास्यास्पद हो चुकी है
कि भाकपा माले के जनसंगठनों के
नेतृत्व में चल रही है।

मल्लाहो को अगर अपने अधिकार लेने है तो उन्हे एकजुट होना होगा । निषाद लोग एकता दिखाये तभी उनका आर्थिक,समाजीक व राजनितीक स्थिती अच्छी हो सकती है। हमारी जाती के लोगो की स्थिती अती दयनिय है जिसे बदलना है। आप सभी निषाद बन्धु ध्यान दे हम अपने हक के लिये आन्दोलन करेन्गे हमे अपना अधिकार लेना हैँ।

जै निषाद!

N.A.F. The leader of fishermen

याचना नहीँ अब रण होगा,
जीवन या मरण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
जिल्लत और अन्याय का जीवन अब हमको न जीना है,
जीन आखो मे आसु है चिँगारी उसमे भरना है।

हर कीमत पर चाहिए आरक्षण

अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ,
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ ।

ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है,
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ ।

अँधेरे में कुछ ज़िंदगी होम कर दी,
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ ।

Nishad Raj Eklavya Story in Hindi


♦ जन्म - महाभारत काल

♦ मृत्यु - यदुवंशी श्रीकृष्ण द्वारा छल से

♦ पिता - महाराज हिरण्यधनु

♦ माता - रानी सुलेखा

♦ बचपन का नाम - अभिद्युम्न ( अभय )

♦ जीवन से शिक्षा -

1. अपने लक्ष्य के प्रति लगन होना

2. समस्याओँ से डट कर सामना करना

3. माता पिता और गुरू का आदर करना

4. मन लगाकर परिश्रम करना

आदि आदि

एकलव्य निषाद वंश के राजा थे l

निषाद वंश या जाति के संबंध मेँ सर्वप्रथम उल्लेख "तैत्तरीय संहिता" मेँ मिलता है जिसमेँ अनार्योँ के अंतर्गत निषाद आता है l

"एतरेय ब्राह्मण" ग्रन्थ उन्हेँ क्रूर कर्मा कहता है और सामाजिक दृष्टि से निषाद को शूद्र मानता है l

महाभारत काल मेँ प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश मेँ सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य एकलव्य के पिता निषादराज हिरण्यधनु का था l गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी l

उस समय श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि और चन्देरी आदि बड़े राज्योँ के समकक्ष थी l निषाद हिरण्यधनु और उनके सेनापति गिरिबीर की वीरता विख्यात थी l

निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा के स्नेहांचल से जनता सुखी व सम्पन्न थी l राजा राज्य का संचालन आमात्य (मंत्रि) परिषद की सहायता से करता था l

निषादराज हिरण्यधनु को रानी सुलेखा द्वारा एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम "अभिद्युम्न" रखा गया l प्राय: लोग उसे "अभय" नाम से बुलाते थे l

पाँच वर्ष की आयु मेँ एकलव्य की शिक्षा की व्यवस्था कुलीय गुरूकुल मेँ की गई l

बालपन से ही अस्त्र शस्त्र विद्या मेँ बालक की लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरू ने बालक का नाम "एकलव्य" संबोधित किया l

एकलव्य के युवा होने पर उसका विवाह हिरण्यधनु ने अपने एक निषाद मित्र की कन्या सुणीता से करा दियाl

एकलव्य धनुर्विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता था l उस समय धनुर्विद्या मेँ गुरू द्रोण की ख्याति थी l पर वे केवल ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग को ही शिक्षा देते थे और शूद्रोँ को शिक्षा देने के कट्टर विरोधी थे l

महाराज हिरण्यधनु ने एकलव्य को काफी समझाया कि द्रोण तुम्हे शिक्षा नहीँ देँगेl

पर एकलव्य ने पिता को मनाया कि उनकी शस्त्र विद्या से प्रभावित होकर आचार्य द्रोण स्वयं उसे अपना शिष्य बना लेँगेl

पर एकलव्य का सोचना सही न था - द्रोण ने दुत्तकार कर उसे आश्रम से भगा दियाl

एकलव्य हार मानने वालोँ मेँ से न था और बिना शस्त्र शिक्षा प्राप्त तिए वह घर वापस लौटना नहीँ चाहता थाl

एकलव्य ने वन मेँ आचार्य द्रोण की एक प्रतिमा बनायी और धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगाl शीघ्र ही उसने धनुर्विद्या मेँ निपुणता प्राप्त कर ली l

एक बार द्रोणाचार्य अपने शिष्योँ और एक कुत्ते के साथ उसी वन मेँ आएl उस समय एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थेl

कुत्ता एकलव्य को देख भौकने लगाl एकलव्य ने कुत्ते के मुख को अपने बाणोँ से बंद कर दियाl कुत्ता द्रोण के पास भागाl द्रोण और शिष्य ऐसी श्रेष्ठ धनुर्विद्या देख आश्चर्य मेँ पड़ गएl

वे उस महान धुनर्धर की खोज मेँ लग गए

अचानक उन्हे एकलव्य दिखाई दिया

जिस धनुर्विद्या को वे केवल क्षत्रिय और ब्राह्मणोँ तक सीमित रखना चाहते थे उसे शूद्रोँ के हाथोँ मेँ जाता देख उन्हेँ चिँता होने लगीl तभी उन्हे अर्जुन को संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के वचन की याद आयीl

द्रोण ने एकलव्य से पूछा- तुमने यह धनुर्विद्या किससे सीखी?

एकलव्य- आपसे आचार्य

एकलव्य ने द्रोण की मिट्टी की बनी प्रतिमा की ओर इशारा कियाl

द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणा मेँ एकलव्य के दाएँ हाथ का अगूंठा मांगाl

एकलव्य ने अपना अगूंठा काट कर गुरु द्रोण को अर्पित कर दिया l

कुमार एकलव्य अंगुष्ठ बलिदान के बाद पिता हिरण्यधनु के पास चला आता है l

एकलव्य अपने साधनापूर्ण कौशल से बिना अंगूठे के धनुर्विद्या मेँ पुन: दक्षता प्राप्त कर लेता हैl

आज के युग मेँ आयोजित होने वाली सभी तीरंदाजी प्रतियोगिताओँ मेँ अंगूठे का प्रयोग नहीँ होता है, अत: एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक कहना उचित होगाl

पिता की मृत्यु के बाद वह श्रृंगबेर राज्य का शासक बनता हैl अमात्य परिषद की मंत्रणा से वह न केवल अपने राज्य का संचालन करता है, बल्कि निषाद भीलोँ की एक सशक्त सेना और नौसेना गठित करता है और अपने राज्य की सीमाओँ का विस्तार करता हैl

इस बीच मथुरा नरेश कंस के वध के बाद, कंस के संबंधी मगध नरेश जरासन्ध शिशुपाल आदि के संयुक्त हमलोँ से भयभीत श्रीकृष्ण मथुरा से अपने भाई बलराम व बंधु बांधवोँ सहित पश्चिम की ओर भाग रहे थेl

तब निषादराज एकलव्य ने श्रीकृष्ण की याचना पर तरस खाकर उन्हेँ सहारा व शरण दियाl

( अधिक जानकारी के लिए पेरियार ललई सिँह यादव द्वारा लिखित एकलव्य नामक पुस्तक पढ़ेँ )

एकलव्य की मदद से यादव सागर तट पर सुरक्षित भूभाग द्वारिका मेँ बस गएl

यदुकुल ने धीरे धीरे अपनी शक्तियोँ का विस्तार किया और यादवोँ ने सुरापायी बलराम के नेतृत्व मेँ निषादराज की सीमाओँ पर कब्जा करना प्रारम्भ कर दियाl

इसी बीच श्रीकृष्ण ने अपनी नारायणी सेना (प्रच्छन्न युद्ध की गुरिल्ला सेना) भी गठित कर ली थीl

अब यादवी सेना और निषादोँ के बीच युद्ध होना निश्चित थाl

यादवी सेना के निरंतर हो रहे हमलोँ को दबाने के लिए एकलव्य ने सेनापति गिरिबीर के नेतृत्व मेँ कई बार सेनाएँ भेजीँl पर यादवी सेनाओँ का दबाव बढ़ता जाता हैl

तब एकलव्य स्वयं सेना सहित यादवी सेना से युद्ध करने के लिए प्रस्थान करते हैँl

बलराम और एकलव्य की सेना मेँ भयंकर युद्ध होता है और बलराम की पराजय होती हैl

बलराम और यादवी सेना को पराजित कर एकलव्य विजय दुंदुभी बजाते हैँ, तभी पीछे से अचानक कृष्ण की नारायणी सेना जो कहीँ बाहर से युद्ध कर लौटी थी, एकलव्य पर टूट पड़ती है l

एकलव्य इस अप्रत्याशित हमले से घिरकर रक्तरंजित हो जाते हैँ l ऐसी ही विकट स्थिति मेँ कृष्ण के हाथोँ महाबली एकलव्य का वध होता है l

अपने महानायक एकलव्य की कृष्ण के हाथोँ मृत्यु से निषाद क्षुब्ध होते हैँ l यदुकुल पतन के बाद उन्हीँ मेँ से एक निषादवीर के द्वारा कृष्ण की हत्या कर दी गई l

इतना ही नहीँ यादवी विनाश के बाद जब श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार शेष बचे यदुवंशीय परिवारोँ को लेकर अर्जुन द्वारिका से हस्तिनापुर जा रहे थे

तब बदले की भावना से निषाद-भीलोँ की सेना ने वन पथ मेँ घेरकर भीषण मारकाट मचाई और अर्जुन को पराजित कर पुरूषोँ को बन्दी बना लिया l

साथ ही यदुवंश की सुन्दरियोँ-गोपियोँ का अपहरण कर लिया l

" भीलन लूटी गोपिका,

ओई अर्जुन ओई बाण ll "

दलित मुख्यमंत्री के राज में निषाद दुःखी क्यों?

दलित मुख्यमंत्री के राज में निषाद दुःखी क्यों?


भगवान राम को सरयू पार कराने वाले निषाद राज केवट ने राम राज में तो सुख भोगा पर यह कभी नहीं सोचा होगा कि कलियुग में जब दलितों का राज आयेगा, तो निषादों की संतानों पर अत्याचार होंगे और उनसे उनके जीने के साधन छीन लिये जायेंगे। प्रयागराज इलाहाबाद में यमुना, गंगा व सरस्वती का मिलन स्थल है। यहां लगभग ३०० किमी यमुना का कछार बहुत ब़ढया यमुना रेत से पटा प़डा है। जिसे खोद कर बेचने का पारंपरिक कानूनी हक स्थानीय समुदाय को होता है, जो इस इलाके में निषाद है। पर स्थानीय खनन माफिया के चलते आज यह निशाद समुदाय दरदर की ठोकरे खा रहा है। दुर्भाग्यवश भाजपा, बसपा व सपा के स्थानीय विधायक और नेता भी तो खनन माफिया के साथ हैं या सीधे लूट में शामिल हैं।


इतना ही नहीं उनके पारंपरिक रोजगारों पर भी इसी माफिया का नियंत्रण है। नदी के किनारे गैर मानसूनी महीनों में खेती करना या नाव पार कराना या मछली पक़डना स्थानीय समुदाय के नैसर्गिक अधिकार हैं। पर यह सब करने के लिए भी उन्हें स्थानीय माफियाआें को टैक्स देना प़डता है। जैसे खादर में लगने वाले तरबूज के हर पौधे पर पांच रु मछली पक़डने पर हर किलो ५० रु। इतना ही नहीं नाव चलाने का ठेका भी किसी निषाद के नाम पर लेकर उसे कोई माफिया ही चलाता है और खुद लाखों कमाता है, जबकि निषाद भूखे मरते हैं। इलाहाबाद की बारह, कर्चना तहसील, कोशाम्बी की छैल व मंझनपुर तहसील और चित्रकूट की मउ तहसील के निषादों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से ब़ढे डॉ आशीष मित्तल व उनके साथियों ने ‘आल इंडिया किसान मजदूर सभा’ के झंडे तले संगठित कर इस शोषण के विरुद्ध लगातार बारबार प्रदर्शन किये। जिला प्रशासन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सन्‌ २००८ के आदेश व प्रदेश सरकार के सन्‌ २००० के आदेशों का हवाला दिया। पर कोई सुनवाई नहीं हुई। बल्कि इन सबके विरुद्ध पुलिस और गुंडों का आतंक ब़ढता गया। बारबार संघर्ष हुए। जिनमें मजदूर घायल हुए और मारे भी गये, पर पुलिस और प्रशासन का रवैया खनन माफियाआें की तरफदारी वाला रहा और माफिया द्वारा सताये जा रहे निषादों के खिलाफ दर्जनों फर्जी मुकदमें कायम कर दिये गये। बावजूद इसके इन जुझारू निषादों का मनोबल नहीं टूटा और यह आज भी अपने हक के लिए ल़ड रहे हैं। क्या यह संभव है कि दलितों के लिए दबंगाई से आवाज उठाने वाली सुश्री मायावती, जोकि प्रदेश की पहली बहुमत वाली दलित सरकार की नेता हैं, तो इस दमन चक्र का पता ही न हो।-स्वतंत्र वार्ता

Hame apane huk ke liye ladana hai

Mere priya nishad bandhu hame apane purwajo ko nahi bhoolna chahiye. Ekalavay sa guru bhakti bhism si sakti.
Guharaj jaisi mitravat,
Phoolan jaise nirbhayta honi chahiye hum me. Hamari jati me abhi bhi 90% atyadhik garib hai. Unke uthan ke liye kam se kam hame na sahi ane wali pidi ke liye Aaransan ki mang karni chahiye. Hame ekjut hokar Aandolan karna hoga. Hamari jati me harajano se bhi battar jindgi jee rahe hai log. Din bhar machhali mar rahe thatha raat me daru peekar so rahe log. Unhe jagana hoga. Sabke dilo me aag lagana hoga. Apani jati ke utthan ke liye hum kuch bhi kar sakte ha. Humari takat ko abhi koi dekha nahi lucknow kya hai Dilli ko bhi hila sakate ha hum. Utho chadar pheko andhere ko khatm karna hai, apane huk ke liye hume ladana ha.
Phoolan jaisi sahasi veerangnaye hamare kul me hai tab hume kisase darna hai. Hume apane huk ke liye ladana hai.