आरक्षण के नाव को पाकर हरिजन तो सागर पार होगये लेकिन नाव खेनेवाले माझी खुद भवसागर मे डुब रहे है।

टूटी खटिया,फूटी हाँडी एक अदद
फटी कथरी जिस पर हर हफ्ते ही पैबंद
लगाया जाता है । पेट फुलाए, दुबले -
पतले गंदे -अधनंगे बच्चे जिनको इस
एक कथरी पर इक साथ सुलाया जाता है ।
दिन भर में बस एक जून ही घर में
खाना पकता है दिन भर में बस एक बार
ये चूल्हा जलाया जाता है। देश चलाने
वालों एक दिन मल्लाह-केवट बस्ती में आकर
देखो घोर अभावों में भी जीवन कैसे
बिताया जाता है। लालकिले से केवट -
बस्ती की दूरी को जल्दी पाटो बापू
का इक मन्त्र आज फिर -फिर यह
दोहराता है । मल्लाहो की स्थिती कितनी बद से बत्तर है की वे अपनी आजीवका भी चलाना मुस्किल है। आरक्षण के नाव को पाकर हरिजन सागर पार हो गये लेकिन नाव खेनेवाले माझी खुद भवसागर मे डुब रहे है जिसे बचाना होगा। राज चलाने वाले नेता इनका भी ध्यान दे अन्यथा मल्लाहो की नैया डुब न जाय। कैसे राजा है जिनके राज मे प्रजा अभाव का जीवन जी रहा है। राज चलाओ और अपनी नजर इधर भी लगावो।

मल्लाहो के रोटी छीनती बसपा सरकार। बालु खनन पर दबंगो का राज।

‘इलाहाबाद के शंकरगढ़, जसरा,
बरगढ़ और घूरपुर मिर्जापुर के चुनार, अदलपुरा, गांगपुर वाराणसी के तातेपुर, टीकरी तथा लखनउ,जौनपुर,चंदौली, भदोही बालू
खनन माफियाओ राज है। बालु खनन तथा नदी मे आरपार कराने का अधिकार सिर्फ मल्लाहो का है परन्तु बसपा सरकार के आते ही दबंगो तथा उच्च बिरादरी के लोगो को बालु खनन का ठेका अधिकारीक तौर पर दिया जा रहा है। सरकार उच्च जाती के लोगो को ठेका देकर मल्लाहो की रोटी छीन रही है। खबर के विश्लेषण पर आने से पहले
इस क्षेत्र के आर्थिक राजनीतिक
समीकरण को जान लेना जरूरी है। घूरपुर,
शंकरगढ़, जसरा और बरगढ़ ब्लाक
यमुना नदी के तटवर्ती क्षेत्र हैं,
जहां एक ओर भुखमरी के कगार पर निषाद मल्लाह जाति के लोग हैं,
जिनके जीवन का आर्थिक आधार नदी, बालू
और नदी किनारे खेती है
तो वहीं दूसरी ओर यह पूरा क्षेत्र
बालू और पत्थर के अवैध खनन के लिए
भी मुफीद है। जिस पर मौजूदा समय में
बसपा के सांसद कपिल
मुनि करवरिया का एकक्षत्र राज है।
करवरिया जी अखिल भारतीय ब्राह्मण
महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं
तथा बसपा में आने से पहले भाजपा में
थे और इन्हें ही इस क्षेत्र में
बजरंग दल खड़ा करने का श्रेय
भी जाता है। वहीं इनके एक भाई
भाजपा से अभी-अभी विधायक हुए हैं।
करवरिया के अवैध बालू खनन,
जिसका सलाना टर्न ओवर करोड़ों का है,
के खिलाफ वहां के मल्लाह
जाति के लोग लंबे समय से कम्युनिस्ट
पार्टियों के नेतृत्व में आंदोलनरत
हैं। जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने
भी तल्ख टिप्पणी करते हुए माफिया के
खिलाफ कार्रवाई और अवैध रूप से चल
रही बालू मशीनों को तत्काल बंद करने
का आदेश दिया था। न्यायालय में
अपनी हार और सड़क पर गरीब -
गुरबों का कम्युनिस्ट पार्टियों के
नेतृत्व में बढ़ती जन गोलबंदी से
निपटने का रास्ता उन्होंने इस पूरे
आंदोलन को नक्सलवाद के हव्वे से
जोड़ने में निकाला , जिसमें
मीडिया का एक हिस्सा उनका सबसे
विश्वसनीय सहयोगी बनकर उभरा है। आज
स्थिति इतनी हास्यास्पद हो चुकी है
कि भाकपा माले के जनसंगठनों के
नेतृत्व में चल रही है।

मल्लाहो को अगर अपने अधिकार लेने है तो उन्हे एकजुट होना होगा । निषाद लोग एकता दिखाये तभी उनका आर्थिक,समाजीक व राजनितीक स्थिती अच्छी हो सकती है। हमारी जाती के लोगो की स्थिती अती दयनिय है जिसे बदलना है। आप सभी निषाद बन्धु ध्यान दे हम अपने हक के लिये आन्दोलन करेन्गे हमे अपना अधिकार लेना हैँ।

जै निषाद!